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________________ * ) बावजूद भी पूर्ण शुद्ध करने का प्रयत्न किया है। फिर भी अवश्य ही अशुद्धि छदमस्तता के कारण रह गई होगी, उसको मंत्र शास्त्रज्ञ शुद्ध कर अवश्य ही पढ़ेंगे। मुझे तो क्षमा करें। मैं तो अभी भी इस बात को कह रहा हूं कि जो मंत्र शास्त्रज्ञ नहीं हैं जिनको इस विषय में थोड़ा भी ज्ञान नहीं है वे मेरे मंत्र शास्त्रों को हाथ नहीं लगावें। क्योंकि श्रद्धा रहित व्यक्ति का बिगाड़ ही होगा, इस मंत्र शास्त्र में भी, मारण, उच्चाटन, स्तम्भन, वशीकरण आदि प्रकरण हैं। साधक सावधानी से रहे, योग्यता है तो करे नहीं तो दूसरे को हानि पहुंचाने का कार्य कभी नहीं करे। करेगा तो उसकी जिम्मेदारी उसी के ऊपर रहेगी, हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं । हम टीकाकर्ता दूसरे को हानि पहुंचाने हेतु कार्य की आज्ञा नहीं देते हैं। प्रकरण व लिखना पड़ा है। हमारा स्वतन्त्र कोई ऐसा विचार नहीं है। मंत्रशास्त्र विषय ही ऐसा है । आचार्य मल्लिगंर, आचार्य इन्द्रनन्दी, ऐलाचार्य श्रादि लोगों ने मंत्र शास्त्रों की रचना की है। उन्हीं के आधार पर हमने लिखा है। पढ़े और समझे, मेरा कार्य तो सिर्फ मंत्र शास्त्रों का उद्धार करना मात्र है। अज्ञानी मिथ्यादृष्टि, संशयी श्रादि व्यक्तियों को इस शास्त्र के मंत्र का दान नहीं करे, करेगा तो बाल हत्या, मुनि ह्त्या का पाप लगेगा। पूरा विषय मंत्रों के लक्षण में देख लेवे । इस शास्त्र के छपने में जिन २ दातारों ने सहायता की है उनको मेरा पूर्ण आशीर्वाद है । ग्रंथ की टीका लिखने आदि कार्य में मेरे शिष्य प्रवर्तक मुनि श्री १०८ पद्मनन्द जी ने बहुत परिश्रम किया है उनको भी मेरा आशीर्वाद है । हमारी ग्रंथमाला के कर्मठ कार्य कर्ता गुरुभक्त श्री शान्तिकुमार जी गंगवाल व उनके सुपुत्र प्रदीपकुमारजी तथा अन्य सहयोगी कार्यकर्त्ताओं को मेरा पूर्ण आशीर्वाद है कि वे इसी प्रकार कार्य करते रहें । I अन्त में पुनः मेरा आदेश है कि इस मंत्र शास्त्र से पूर्ण सावधान रहे, नहीं तो बहुत ही ख़तरा पैदा हो जाएगा। नहीं पसन्द तो मध्यस्थ रहे। अयोग्य व्यक्ति को मंत्राराधना नहीं करनी चाहिये । जो दूसरे को हानि पहुंचायेगा, उसको ही हानि हो जाएगी। सावधान ! सावधान ! सावधान ! गणधराचार्य कुम्धुसागर
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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