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________________ क्यों? मैंने तो साहित्योद्धार का ही कार्य किया है। विद्वानों की दृष्टि अवगुणों के प्रति ही क्यों ? गुण ग्राहक बनना चाहिए । पत्थर की मूत्ति भी बना सकते हो और किसी का सिर भी फोड़ सकते हो। कुपा खुदवाने बाला इसलिए नहीं खुदवाता कि कोई उसमें पड़कर मर जावे। कोई अविबेकी पानी पीने को छोड़कर, उसमें पड़कर मरे तो कंया खोदने वाले का क्या अपराध? इसी प्रकार मेरे द्वारा संकलित किया हुआ मंत्र शास्त्र लघुविद्यानुवाद है कोई अविवेकी इस मंत्र शास्त्र का दुरुपयोग करे तो मेरा क्या अपराध ? मैंने तो सब लिख दिया । विद्वानों को सोचना चाहिए । मंत्र शास्त्र का अवर्णवाद को ठीक करना चाहिए । क्या उसमें सब ही मंत्रादि लोगों का अहित करने वाले हैं? मेरी तो समझ से करीब १ प्रतिशत को छोड़कर ६६ प्रतिशत मंत्र अच्छा है और लोकोपकारी है। जहां अच्छाई है वहां बुराई भी होती है । बुराई की ओर दृष्टि तो दुर्जनों की ही होती है, सज्जन साधु संत तो अच्छाई को ही देखता है । ग्राम शुकर को मिठाई भी डालो, तो भी विष्टा की ओर ही दृष्टि रहती है। वैसे ही दुर्जनों की दृष्टि होती है । दुर्जनों को शूकर बुद्धि का त्याग करना चाहिए। विभिन्न मंत्र शास्त्रों में से भैरव पद्यावती कल्पः भी एक मंत्र ग्रंथ है । यह पहले सुरत से छप चुका है तो भी मैंने नई टीका संस्कृत के ऊपर तैयार किया है। यह दिखाने के लिये कि प्राचार्य कृत मंत्र शास्त्र में भी अशुद्ध द्रव्यों का वर्णन है। मैंने अपने मन से कुछ नहीं लिखा। विद्वान देखकर समीक्षा करें। नहीं तो मंत्र शास्त्र जो कि जिनागम का अंग है वही नष्ट हो जाएगा। या तो आप विद्वान कुछ करके दिखायें अथवा मैंने जो संकलित किया है उसको स्वीकार करिये। मैं और भी मंत्र शास्त्रों पर लिखने वाला हूं। दुर्जन लोग कितनी भी हमारी बुराई करें, पेड़ को पत्थर मारने से वह पेड़ फल ही देता है । मुझे किसी का भय नहीं । अपनी अपनी रुचि । मैं कोई पाप कार्य नहीं कर रहा हूं। ऐसा वर्णन क्यों है ? यह तो पूर्वाचार्यों को पूछो, मंत्र वेधक शास्त्रों में वर्णन मिलता ही है। अब मंत्र शास्त्रज्ञों के लिये यह ग्न थ तैयार है। देखिये साधना कर जिनागम की तथा जिनधर्म की रक्षा कीजिये । केवल चिल्लाने, बुराई करने, किसी को बदनाम करने से काम नहीं चलेगा। पहले भी मंत्र शास्त्रों के बल से विद्या सिद्ध कर जिन धर्म की रक्षा महापुरुषों ने की है, तब ही आज हम लोग जीवित हैं । इतिहास उठाकर देखिये, मैंने इस नथ की टीका को सूरत से छपने वाला पद्मावती कल्पः, अहमदाबाद से छपने वाला पद्मावती उपासना हस्त लिखित दोनों प्रतियों से किया है। मैंने उनकी बहुत सहायता ली है इसलिये उन ग्रंथों का उपकार मानता हूं। मंत्र शास्त्रों की शुद्धि करना बड़ा कठिन कार्य है और जितने ग्रंथ उतने ही अलग-२ पाठ भेद होने के
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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