________________
* प्रस्तावना *
.
yy.
..
अनंत आकाश में ध्वनित-गुजित-निनादित प्रवहमान ध्वनि (भः रव) भैरव ही है । दिव्य अलौकिक ॐकार स्वरूपा ध्वनि-रव को जैनागम में दिव्य ध्वनि कहा गया है । वैदिक विचार में ध्वनि आकाश का गुण है एवं जैन दृष्टि में वह पुद्गल पर्याय है । दिव्य ध्वनि का पर्याय ही भैरव है ।
पद्म नाम कमलबाची है और मानव शरीर में इनको स्थितिकोषों, पिंडों एवं चक्रों के स्वरूप में प्रदर्शित है-जिसकी पुष्टि-योग-ध्यान-तंत्रागम के शास्त्र एवं षड्चक्र-अष्टदल-विद्या, आत्मविद्यादि शास्त्रों में वरिणत है । कुंडलिनी योग और योग दर्शन में इनका विस्तृत-सूक्ष्म विवेचन मिलता ही है।
पद्मावती-कमलावती-कमलाकर-प्राकारों के ये कोष शरीर स्थित हैं । इन पर देव-देवांगनाओं के भवन-विमान-प्रायु-प्राकार-रंग-रूप एवं नामकरण का जैन शास्त्रों में विस्तृत विवेचन है। मोक्षशास्त्र तत्वार्थसूत्र में उमास्वामी ने "तन्त्रोवासि-श्री-ही आंत कीर्ति-बुद्धि-लक्ष्मी-पल्योपमा स्थितियाँ-" सूत्र संकेत द्वारा इनकी पुष्टि की ही है सो प्रत्येक जैन को जो सामान्य ज्ञान ही रखता है, ज्ञातव्य है ।
आधुनिक विज्ञान की सामान्य दृष्टि में मानव-शरीर-मन-प्रात्मा अर्थात् Body+Mind+Soul की त्रिकुटि है। तंत्रागम-शैवशास्त्र, शाक्तमत पूरा