________________
( २८ )
~
'ग्रङ्ग ष्ठेन चाल्यन्ते 'मोक्षार्थी प्रङ्ग ुष्ठेन पालयेत् । श्रभिचार कर्मरिण तर्जन्या, शान्तिक पौष्टिकयो: मध्यमाङ्ग, त्या, वश्य कर्मणि प्रनामिकाङ्ग ुल्या, आकर्षण कर्मरिण कनिष्ठाङ्ग ल्या चालयेत् ॥ १२ ॥
इति ग्रन्थानुसारेण दिक्कलादि मेदेन षट् कर्मणि व्याख्यातानि ॥
[ हिन्दी टीका ] - मोक्ष प्राप्ति के लिये अंगूठे से जाप्य करे, मरण कर्म के लिये तर्जनी से, शांतिक और पौष्टिक कर्म के लिये मध्यमागुलि से जाप्य करे, वश्य कर्म के लिये अनामिका को चलावे और आकर्षण क्रिया करने के उद्देश्य से कनिष्ठिका अंगुली से मंत्री जाप्य करे || १२ ||
पीतारुणासितैः पुष्पैः स्तम्भनाकृष्ट मारणे ।
शांतिक पौष्टिकयोः श्वेतैः जपेन्मंत्रं प्रयत्नतः ।। १३ ।।
प्रर्थः:-स्तम्भन कर्म में पीले पुष्पों से, श्राकर्षण के लिये लाल पुष्प, मारण कर्म में काले पुष्पों से, शांतिक श्रीर पौष्टिक कर्म के लिये सफेद पुष्पों से जाप्य करे ||१३||
महा देवि पद्मावती की सिद्धि करने का यंत्र इवानीं देव्याराधन गृह्य यन्त्रोद्धारो विधीयतेचतुरस्त्रं विस्तीर्णं रेखात्रयसंयुतं चतुर्द्वारम् । विलिखेत् सुरभिद्रव्यैर्यन्त्रमिदं हेमलेखन्या ॥१३॥
[ संस्कृत टीका ] - 'चतुरस्त्रं' समचतुरस्त्रम् | "विस्तीर्ण' विपुलं 'रेखाश्रय संयुतं' रेखात्रितय संयुक्तम् । 'चतुर्द्वारं' चतुर्द्वारान्वितम् । 'विलिखेत्' विशेषेण लिखेत् । 'सुरभिद्रव्यैः' कुमकुम कस्तूरिकादि सुगन्धि द्रव्यैः । 'यन्त्रमिदं' इदं देव्या गृह्यन्त्रम् । 'हेम लेखन्या' स्वर्णलेखन्या || १३ ||
[ हिन्दी टीका ] - देवी आराधना के यंत्र को सुगन्धित द्रव्यों से सोने की कलन लेकर लिखे । चौकोर विस्तार सहित तीन रेखाओं से संयुक्त चार द्वारों से सहित यंत्र बनावे ॥१३॥
यह तेरह नं० का श्लोक हस्तलिखित प्रति में नहीं है। इस श्लोक को सूरत से प्रकाशित भैरव पद्मावती करूप से उद्धरित किया है।