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( २९ ) मंत्र जाप्य करने के लिये पल्लवादि विधान का कोष्टक
१ | शान्ति कर्म पौष्टि कर्म वश्य कर्म आकर्षण कर्म २ | पश्चिम वरुण । नैऋत्य दिशा कुबेर दिशा उत्तर | दक्षिण यम् | दिशा
विशा ३ | अद्ध रात्रि प्रभात काल पूर्वान्ह काल पूर्वान्ह काल ४ | ज्ञान मुद्रा ज्ञान मुद्रा सरोज मुद्रा अंकुश मुद्रा ५ | पर्यङ्कासन पंकजासन स्वस्तिकासन दण्डासन
स्वाहा पल्लव स्वधा पल्लव वषट् पल्लय वौषट् पल्लव | श्वेत वस्त्र श्वेत वस्त्र अरुण पुष्प उदयार्क वस्त्र | श्वेत पुष्प श्वेत पुष्प रक्त वर्ण अरुण पुष्प | श्वेत वर्ण श्वेत वर्ण रक्त वस्त्र उदयार्क वर्ण परक योग पूरक योग
पूरक योग पूरक योग ११ / दीपन प्रादि नाम | वोपन आदि नाम | संपुट प्रादि मध्य | ग्रन्थन वरणांतरित
नाम
नाम स्फटिक मरिण । मुक्ता मरिण प्रवाल मणि प्रवाल मणि मध्यमांगुली मध्यमांगुली अनामिका
कनिष्ठका १४ । दक्षिरण हस्त दक्षिरण हस्त वाम हस्त . वाम हस्त १५ वाम वायु
वाम वायु वाम वायु
वाम वायु शरद ऋतु हेमन्त ऋतु वसन्त ऋतु
वसन्त ऋतु | जल मण्डल मध्य | जल मण्डल जल मण्डल अग्नि मण्डल १८ अद्ध रात्रि प्रभात काल पूर्वान्ह काल पूर्वान्ह काल
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नोट:-प्रत्येक दिन में २। घड़ी २॥ घड़ी क्रमशः पहों ऋतु समझना ।
सुगन्धित द्रव्य अर्थात् केशर, कस्तुरी, गोरोचल वा अष्टगंधादि से लिखे । धरणेन्द्राय नमोऽधच्छदनाय नमस्तथोदनाय । पद्मच्छदनाय नमो मन्त्रान् वेदादिमायाद्यान् ॥१४॥
[संस्कृत टीका]-धरणेन्द्राय नमः इति पूर्वद्वारपदम् । अधच्छदनाय नमः इति दक्षिण द्वार पदम् । 'तथा' तेन प्रकारेण । ऊर्ध्वछदनाय नमः इति पश्चिमद्वारपरम् । पप्रच्छदनाय नमः इति उत्तर द्वार पयम् । 'मन्त्रानेतान्' एतान् मन्त्रान् । कथम्भूतान्? 'वेदादिमायाद्यान्' उकारादि ह्रीं काराद्यान् ॥१४॥