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( २७ ) [संस्कृत टीका]-"विद्वेषणत्यादि' विद्वेषणे हूं इति पल्लवं प्रयोज्यम् । प्राकर्षण वौषड़न्तं प्रयोज्यम् । उच्चाटने फडिति पल्लवं प्रयोज्यम् । वश्ये कर्मरिण यषड् इति पल्लवं योज्यम् । वैरिवधे च घे घे इति पल्लवं योज्यम् स्तम्भने ठः ठः इति पल्लवं योज्यम् । 'स्वाहा' स्वाहेति पल्लवं शान्तिके योज्यम् । 'स्वधा' इति पल्लवं पौष्टिके योज्यम् । इतिषट्कर्मकरणे एते पल्लवा योजनीयाः ॥१०॥
[हिन्दी टीका]-पट् कर्म करने के लिये इस प्रकार पल्लवों की योजना करना चाहिये, विद्वेषण करना हो तो हुँ पल्लव लगाकर मंत्र जाप्य करे, आकर्षरण कर्म के लिये 'संवौषट्, पल्लव लगावे अथवा 'वौषट् लगावे, उच्चाटन कर्म में 'फट्' पल्लव का प्रयोग करें, वश्य कर्म के लिये 'वषट् पल्लव की योजना करे बैरी के वध में 'घे घे पल्लव लगाकर जा'य करे, स्तम्भन क्रिया में 'ठः ठः' का प्रयोग करे, शांतिक के लिये, स्वाहा का और पौष्टिक कर्म के लिये, स्वधा पल्लव का प्रयोग करके मंत्री को मंत्र का जाप्य करना चाहिये ।।१०।।
स्फटिक प्रवाल मुक्ताफल चामोकर पुत्रजीव कृतमणिभिः । अष्टोत्तर शतजाप्यं शान्त्याचथें करोतु बुधः ॥११॥
[संस्कृत टोका]-स्फटिककृतमरिणभिः शान्तिकमरिण। प्रवाल कृतमरिणभिः वश्याकर्षणयोः । मुक्ताफलकृतः पौष्टिक कर्मणि । 'चामीकर' सुवर्णकृतमरिणभिः स्तम्भन कर्मरिण । पुत्रजीवकृतमरिणभिः विद्वेषणोचाटन प्रतिषेधकर्मरिण । एतेषां कृतमरिणभिः । 'अष्टोत्तर शत जाप्य अष्टाधिक शतं जाप्यं 'शान्त्याद्यर्थ' शान्त्याद्यर्थे शान्तिकं आदि कृत्वा 'बुधः' प्राज्ञः 'करोतु कुर्यात् ॥११॥
हिन्दी टीका]-शांति कर्म के लिये, स्फटिक मरिण की माला, वशीकरण कर्म और पावर्षरण कर्म के लिये प्रवालमणि की (मुगा) माला को प्रयोग में लावे, पौष्टिक कर्म के लिये, सच्चे मोती की माला से जाग्य करे । स्तंभन कर्म के लिये सोने की माला से, विद्वेषण व उच्चाटन और मारण कर्म के लिये पुत्र जीवक मरिण की माला से बुद्धिमान मनुष्य १०८ बार जाप्य करे ॥११॥
जाप्य के लिये प्रगलिविधान मोक्षाभिचार शान्तिकवश्याकर्षेषु योजयेत् क्रमशः । अगष्ठाद्यङ्ग लिका मण्योऽङ्ग ष्ठेन चाल्यन्ते ॥१२॥
(संस्कृत टीका)-'अङ्ग ष्ठाद्यङ्गलिका' अङ्ग प्ठमादि कृत्वा अङ्ग लीः मोक्षादि कर्मसु योजयेत् । कथम्? 'क्रमशः कम परिपाट्या । 'मणयः' प्राक्कथितमणयः