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________________ ( २० > नहीं सकता है । निष्फल होते हैं और हानि पहुँचाने वाले होते हैं। इसलिये मंत्रवादी साध्य और शत्रु मंत्रों को कभी भी जापने के लिये प्रयत्न न करें ||१७|| फलदं कतिपय दिवसः सिद्ध ं चेत् साध्यमपि दिनेबहुभिः । टिति फलदं सुसिद्ध प्राणार्थ विनाशनः शत्रुः ।। १८ ।। [ संस्कृत टीका ]- 'सिद्ध ं चेत्' सिद्ध' मन्त्रं चेत् । 'कतिपय दिवस' क्रियद्भिर्वासरै: । 'फलदं' फलदायकं भवति । 'साध्यमपि दिनेर्बहुभिः श्रपि पश्चात् साध्यं मन्त्रं बहुभिदिनः फलदं भवति । 'झटिति फलदं सुसिद्धं' सुसिद्ध मन्त्रं झटिति शीघ्र फलदायकं भवति । 'प्राणार्थविनाशनः शत्रुः ' शत्रुर्मन्त्रं प्रारणार्थविनाशकरो भवति ॥ १८ ॥ [ हिन्दी टीका ] - अब यहाँ पर मल्लिषेरणाचार्य कौनसा मंत्र कितने दिनों में और कब फल देता है सो कहते हैं । साध्य मंत्र कई दिनों के बाद फलदायक होते हैं । सुसिद्ध मंत्र शीघ्र ही फलदायक होते हैं । और शत्रुमंत्र के जप करने से प्रारणों का विनाश होता है और प्रयोजन का भी नाश होता है ।। १८ ।। प्रादावन्से शत्रुर्यदि भवति तदा परित्यजेन्मन्त्रम् । स्थानत्रितये शत्रुर्मृत्युः स्यात् कार्यहानिर्वा ॥१६॥ [ संस्कृत टीका ] - 'श्रादावन्ते शत्रुर्यदि भवति' मन्त्रस्यादौ मन्त्रान्ते यदि शत्रुर्भवति तदा परित्यजेन्मन्त्रम्' मन्त्रं परिवर्जयेत् । ' स्थानत्रितये शत्रुमृत्युः स्यात्' श्रादिमध्यावसाने यदि शत्रुर्भवति मन्त्रस्य तदा मृत्युर्भवति 'कायहानिर्वा' कार्यनाशी वा भवति ॥ १६ ॥ [हिन्दी टीका ]- मंत्रवादी को मंत्र के आदि में और अंत में शत्रु हो तो मंत्र का त्याग करना चाहिये। तीनों स्थानों में आदि, मध्य और अंत में शत्रु हो तो, वह मंत्र मंत्रवादी के शरीर को नष्ट करता है ( प्राण हर लेता है ) अथवा उसके कार्य का नाश करता है ||१६|| शत्रुर्भवति यarsset मध्ये सिद्ध कष्टेन भवति महता स्वल्प फलं तदन्तगं साध्यम् । चेति कथनीयम् ||२०|| [ संस्कृत टीका ] - 'शत्रु' इत्यादि । यदा प्रायगणने प्रथमतः शत्रुर्भवति, मन्त्रस्य मध्ये सिद्ध भवति । 'तवन्तगं साध्यं मन्त्रस्यान्तगं साध्यं चेत् । 'कष्टेन भवति महता' महता प्रत्यन्त क्लेशेन जायते स्वल्प फलम् । च समुच्चये । 'इति' अनेन प्रका रेण कथनीयम् ॥ २० ॥
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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