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________________ ( २१ ) [हिन्दी टीका]-प्राय की गणना करते समय यदि मंत्र के ग्रादि में शत्रु हो मध्य में सिद्ध हो और अंत में साध्य हो, तो मंत्रवादी को बहुत कष्ट होता है, फल भी बहुत कम (अल्प) होता है। इस प्रकार वर्णन समझना चाहिये ॥२०॥ अन्ते यदि भवति रिपुः प्रथमे मध्ये च सिद्धयुगपतनम् । कार्य यदादि जातं तनश्यति सर्वमेवान्ते ॥२१॥ [संस्कृत टीका]-'अन्ते यदि भवति रिपुः' मन्त्रस्यान्ते यदि शत्रभवति । 'प्रथमे मध्ये च सिद्धयुगपतनम्' मन्त्रादौ मन्त्रमध्ये च सिद्धयुग्मपातो यदि भवति । 'कार्य यदादिजातं' एवंविध मन्त्रे यत् पूर्व जातं कार्य अमितफलं 'तनश्यति सर्वमेवान्ते' तत् कार्य जनित फलं सर्वमेवान्ते अवसाने नाशं प्राप्नोति ॥२१॥ [हिन्दी टीका]-मंत्र वादी के मंत्र के अंत में शत्रु हो और आदि व मध्य में सिद्ध हो तो जो कार्य प्रथम में सिद्ध होगा, वह अन्त में अवश्य नष्ट होगा, ऐसा ऐसा जानना चाहिये ।।२१।। सिद्ध सुसिद्धमयघा रिपुणाऽन्तरितं निरीक्ष्यते यत्र । दुःखापायप्रबलं भवतीति विवर्जयेत् कार्यम् ॥२२॥ [ संस्कृत टोका]-'अथवा' अन्य प्रकारेण 'सिद्ध' सिद्धपदम् 'सुसिद्ध' सुसिद्धपदं 'रिपुरणाऽन्तरित' शत्रुपदान्तरितं यदि निरीक्ष्यते यत्र' यस्मिन् मन्त्रे निरीक्ष्यते रश्यते तदा 'दुःखापाय प्रबलं' क्लेशानर्थप्रचुरं भवति 'इति' एवं ज्ञात्वा 'विवर्जयेन्मन्त्रं' साधनकार्य परिवर्जयेत् ॥२२॥ [हिन्दी टीका] जो मंत्र में सिद्ध, सुसिद्ध के मध्य में शत्रु दिखता हो तो मंत्रवादी ऐसे विघ्नकर्ता मंत्र को शीघ्र ही छोडे । साधन कार्य को छोड़ देवे । जपने योग्य मंत्रों को देखकर ही जपे तब ही पूर्ण सफलता मिल सकती है ॥२२॥ इत्युभयभाषाकरिशेखर श्री मल्लिषेण सूरि विरचिते भैरव पद्मावती कल्पे सकली करणं नाम द्वितीयः परिच्छेदः ॥२॥ इस प्रकार भैरव पद्मावती कल्प की हिन्दी भाषा विजया टीका में सकली करण, नामक द्वितीय अधिकार समाप्त हुना। इसके लिये अकड़म चक्क देखे।
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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