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( १३ )
[ हिन्दी टीका ] उसके बाद सर्व स्वरों से सहित अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लृ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः । हृ कार को सहित करे, जैसे ह, हा, हि, हो, हु, हू, हह . . है हैं, हो, हो, हं, हः इन बीजों से सहित स्वर्णमय ऊँचा वीस हाथ प्रमाण चौकोर प्राकार का ध्यान करे ।
सवस्वर सम्पूर्णः कूटैरपि खातिका कृति ध्यायेत् । निर्मल जल परिपूर्णामिति भीषण जलचराकीर्णाम् ॥७॥
[ संस्कृत टीका ] - 'सर्वस्वर सम्पूर्णः' । के ? 'कूट' सकारैः । 'श्रपि ' निश्चये । 'खातिका कृति' परिखाकारम् । ध्यायेत्' ध्यानं कुर्यात् । कथम्भूताम् ? 'निर्मलजल परिपूर्णाम् पुनः कथम्भूताम् ? 'प्रतिभीषणजल चराकीर्णाम् प्रति भयानक मत्स्यमकरनक्रकच्छपादिजलचरपरिपूर्णाम् ॥७॥
[ हिन्दी टीका | उसके बाद मंत्रवादी प्राचार्य के कथनानुसार 'प्र' से लेकर संपूर्ण स्वरों से सहित कुठाक्षर 'क्ष' को ध् न क्ष, क्ष् या क्षा, क्ष् इ क्षि, न् ई क्षी, क्ष् उ क्षु, क्ष ऊ क्षू, क्ष् ऋ भू, क्ष्ऋ क्ष क्ष लृ श्ल, क्ष् लृ क्ष्लृ क्ष ए क्षे, क्ष ऐ क्ष क्ष प्रोक्षो, न्, भ्रं क्षं क्ष् प्रः क्षः यानी क्षक्षा क्षिक्षी क्षु क्ष क्ष क्ष क्ष्क्षेक्ष क्ष क्ष क्ष क्षः को मिलाकर निर्मलजल से परिपूर्ण प्रत्यन्त भयानक जलचर प्राणियों से सहित एक खाई का चिन्तवन करें ||७|| ज्वलदोङ्काररकार ज्वालादग्धं स्वमग्निपुर संस्थम् । ध्यात्वामृत मन्त्रेण स्नानं पश्चात् करोत्वमुना ||८||
[ संस्कृत टीका ] - 'ज्वलदोङ्काररकार' ज्याज्वल्यमान उकारः, रकाराक्षराणि तेषां ज्वालानिर्दग्धः तं ज्वलदोङ्काररकार ज्वालादग्धम् । कम् ? 'स्वम्' ग्रात्मानम् । कथम्भूतम् ? 'अग्निपुर संस्थम् ' प्रग्निमण्डल मध्यस्थम् । 'ध्यात्वा' ध्यानं कृत्वा । 'पश्चात्' ध्यानानन्तरम् । 'श्रमुना' प्रनेन । 'अमृत मन्त्रेण' वक्ष्यमाणमन्त्रेण । 'स्तानम्' मन्त्रस्नानम् । 'करोतु' कुर्यात् ॥८॥
नं० ( १ ) मन्त्र :- ॐ प्रमृते? ! अमृतोद्भवे ! श्रमृतवर्षिरिण ! श्रमृतं arar ara सं सं क्लीं स्नान मंत्र ह ह ह्राँ ह्रीं ह्रीं ह्रीं द्रावय ह्रीं स्वाहा ।। मृत मन्त्रोऽयम् ॥
१. " ज्लू ब्लू" इति पाठः । २. ज्यो वोहं सः इति ख पाठः ।
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