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[हिन्दी टीका-अंगन्यास करने के बाद ॐ, आ, ई, ऊँ, नौं, अः इन स्वरों सहित 'क्षकार' से दिशाबन्धन करे क्षा क्षी झू क्षौं क्षः ।
यहाँ दिशा बन्धक क्रम अन्य ग्रंथातरसे ।
बायें हाथ की तर्जनी पर केशरादि से 'असिमाउसा' लिखकर तर्जनी को प्रसार कर नीचे लिखे मंत्रों को बोलते हुए, प्रत्येक दिशा में अंगुली को क्रमशः दिखावें । दिशाबन्धन मंत्र :-ॐ क्षां हां पूौं ।
ॐ क्षीं हीं अग्नौ । ॐ हूं हूं दक्षिण । ॐ झें हैं नैऋत्ये । ॐ क्षे हैं पश्चिमे । ॐ क्षों हो वायव्ये 1 ॐ क्षौं ही उत्तरे । ॐ हं हं ईशाने । ॐ क्षः हः भूतले ।
ॐ क्षी ही उद्ध्वें । ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते सभस्त दिग्बंधनं करोमि स्वाहा ।
इस प्रकार सब दिशाओं में अंगली धूमावे । फिर सफेद सरसों को लेकर नीचे लिखे मंत्रों को बोलता जाय और सरसों को सब दिशाओं में फेंक देवे । ताली बजावे, चुटकी बजावे ।
ॐ नमोऽर्हते सर्व रक्ष-२ हूं फट् स्वाहा । हेममय प्राकारं चतुरस्त्रं चिन्तयेत् समुत्तुङ्गम् । विशति हस्तं मन्त्री सर्व स्वर संयुतैः शून्यैः ॥६॥
[संस्कृत टोका]-'हेममयं' स्वर्णमयम्' । कम् ? 'प्राकार' दुर्गम् । कथम्भूतम् ? 'चतुरस्त्रम्' चतुः कोणम् । पुनः कथम्भूतम् ? 'समुत्तुङ्गम्' सम्यम् उन्नतम् । पुनः किविशिष्टम् ? 'विशतिहस्तं' विशति हस्त प्रमाणम्। 'सर्वस्वरसंयुतः शून्यः' हकारः । 'मन्त्री' मन्त्रवादी । "चिन्तयेत्' एवं गुण विशिष्ट प्राकारं ध्यायेत्ध्यानं कुर्यात् ॥६॥