________________ यंत्र क्या है ? यंत्र भी जैन शासन के मूल शास्त्रों से है। विनायक यंत्र, विजयपता का यंत्र, पंच परमेष्ठी यन्त्र-प्रादि यंत्र ही होते है। यंत्र भी एक धर्म का ही रूप है / यन्त्र के विना पंचकल्याए पूजा विधान भी अपूर्ण माने जाते है। तंत्र विद्या भी एक जैन आगम का ही अंग है / किसी प्रकार का रोग आद हो जाने पर नजर लग जाने पर मन्त्र विद्या का प्रयोग किया जाता है / रोगी के सामने मिर्च नमक लेकर या भगवान का अभिषेक किया हुआ जल लगाते हैं-- यह तन्त्र विद्या का ही अंग है / अभिषेक का गधोदक लेने का ब लगाने का विधान जैन आगम में कुछ शास्त्रों में पाया जाता है। औषिध शास्त्र भी तंत्र विद्या में पाता है। यदि आप इसका विरोध करते है तो फिर दवा आदि बन्द करनी होगी। दवा प्रादि बन्द करने से हमारे अन्दर रोग आदि की व्याधियाँ चढतो जावेगी। रोग की व्याधियाँ बढ़ जाने से धर्म ध्यान नहीं हो सकेगा। धर्म ध्यान नहीं होने का परिणाम दुर्गति को और है। एक जगह कहा है। कि धर्म करत संसार सुख, धर्म करत निर्वाण / धर्म पंथ साधे बिना, नर प्रियंच समान / धर्म ध्यान के अनेक उपाय है ... मंत्र. यंत्र, तंत्र जाप पाठ ध्यान स्वाध्याय संयम तप त्याग दान आदि अनेक प्रकार से धर्म ध्यान किया जा सकता है। लेकिन धर्म ध्यान केवल आत्म कल्याण के लिये ही होना चाहिये न कि ख्याति पूजा लाभ प्रादि के लिये। मंत्र, यंत्र, संत्र को जो नहीं मानते वह हमारे ख्याल से जन शास्त्रो को नहीं मानते / जो यंत्र इत्यादि करने वाले का विरोध करते है वे जन प्रागम का ही विरोध करते है / जो जन अागम का विरोध करता है वह जैन नहीं हो सकता। जो जैन शास्त्रों को नहीं मानता उसने अभी सम्यग्दर्शन को नहीं प्राप्त किया। ऐसे व्यक्ति का कल्यारण अभी दूर है / विरोध करने वाले इस घोर संसार में ही गोते लगाने का पुरुषार्थ कर रहा है। हमारा भाव है कि ऐसे व्यक्ति को ऐसी बुद्धि प्राप्त हो कि वह किसी भी प्रकार से जन शासन के मूल पागम शास्त्र पर अपनी प्रास्था जमा कर अपना कल्याण करे। जो इसका विरोध कर रहे है उनके लिये ऐसा लगता है कि वे जिस डाल पर बैठे है -उसी को काट रहे है / जो यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र का विरोध करते है वे भी जिस डाल पर बैठे है-उसी डाल को काटने जैसा लगता है। ऐसे व्यक्तियों से हमारा यही कहना है कि अपने लिए शास्त्रों का अध्ययन करके संत समागम से पक्षपात रहित तत्व चर्चा करके जैन मागम के रहस्यों पर ध्यान दे एवं उन पर अपनी प्रास्था को मजबूत बना कर सम्यग्दर्शन प्राप्त करे, ताकि अनन्त संसार सागर को पार कर सके।