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यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र शास्त्रानुकूल ही है
बाल ब्र० श्री १०८ मुनि चया सागर जी महाराज
अाज हम एक ऐसा प्रसंग रखते है --जिसकी विशेष चर्चा है । प्रसंग है मंत्र, यंत्र, तंत्र का बहुत से व्यत्तियों की जिज्ञासा है कि मंत्र, यंत्र, तंत्र जैन धर्मानुकुल है या महीं। हमारी मान्यता है कि जन शास्त्रों के अनुकूल ही है।
__ मत्रों की शक्ति द्वारा हो हम पत्थर से बनी प्रतिमा को भगवान मानते है । प्रतिमा की पूजा अर्चना करके लाभ मानते है । प्रतिमा कुछ समय पहले एक साधारण सा पत्थर था मगर आज हम उस पत्थर को पत्थर नहीं कहते, उसको भगवान कहते है । मगर पत्थर से भगवान कैसे बने किसके माध्यम से बने ? कारीगर की कला से पत्थर को मूर्ति के रूप में निर्माण तो हो गया एवं पंचकल्याण के माध्यम से भाव मूर्ति व अन्तरंग मूति का निर्माण हुआ । यहाँ ध्यान देने की बात है कि पंचकल्याण में क्या-क्या क्रिया होती है।
मंत्रों के द्वारा गर्भ क्रिया मंत्रों के द्वारा ही जन्म क्रिया एवं इसी प्रकार दीक्षा मनाई जाती है २४ मूल गुणों को मंत्रों के द्वारा आरोपित किया जाता है। उस द्रव्य मूर्ति में मंत्रों के द्वारा ही ज्ञान रूपी विभूति गुरणों को पारोपित किये जाते है । इसके उपरान्त में मोक्ष कल्याण के मंत्र दिये जाते है । मोक्ष कल्याग के मंत्रों के लिए नग्न दिगम्बर की आवश्यकता होती है कहीं-कही तो मुनिराज सुलभ हो जाते है—यदि मुनिराज नहीं मिलते है तो फिर पंडित द्वारा (अपने कपड़े उतार कर) ही उस मूर्ति को द्रव्य भगवान से भाव भगवान बनाने के लिए कानों में फूंक देकर मत्रों का उच्चारण किया जाता है। इन मंत्रों के बाद ही वह पत्थर भगवान के रूप में बदल जाता है। उसे भगवान कहा जाता है । यह शक्ति किस की है ? यह मंत्रों की ही शक्ति है कि पत्थर को भगवान बना देते है। फिर अन्य जगह मंत्र क्यों नहीं काम करेंगे। मंत्र अर्थात ----मन माने मन त्र माने त्रियोग । मन बचन कार्य की शुद्धि से मंत्रों का उच्चारण किया जाए तो समस्त कार्यों की सिद्धि होती है। बिजाअक्षरों को ही मंत्र कहते है। अपने शास्त्रों में प्रनादि अनन्त मूल महामंत्र पंचणवकार है । उसी माध्यम से सभी मंत्रों की उत्पत्ति हुई है।