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________________ ( १६५ ) [हिन्दी टीका-उत्तर दिशा में रहा हुआ कौंच की जड़ को गोमूत्र में पीसकर उसका मस्तक पर तिलक करने शाकिनी उसमें अपना प्रतिबिंब देखती है ।।३८|| दिव्यस्तम्भक चूर्ण प्रादित्याक्षतविष्यस्तम्भविधौ मरिच पिप्पलीकामाम् । दिव्यस्तम्भे सुण्ठी चूर्स व भक्षयेद् धीमान् ॥६॥ [ संस्कृत टीका ]-'प्रादित्याक्षतदिव्यस्तम्भविधौ' प्रादिस्यतन्दुलदिव्य स्तम्भने । 'मरिचपिप्पली कामाम्' उषरणमहाराष्ट्रीचूर्ण भक्षयेत् । करिदिष्य स्तम्भने तु कपालिकाधि कर्परादि । 'विच्यस्तम्भे' दिव्यस्तम्भविभाने । 'सुण्ठीपूर्ण च भक्षपेत्' महौषधी चूर्ण भक्षयेत् । कः 'धीमान्' बुद्धिमान् ॥३६॥ [हिन्दी टीका]-बुद्धिमान मंत्रवादी दिव्यस्तंभन कार्य में प्रांक और सफेद चावल, कालीमिर्च, पीपल (मुलेठी) काम (उपरण) का सेवन करे कर्पूर दिव्यस्तंभन के लिये सोंठ के चूर्ण का भक्षण करे ।।३।। अग्नि तथा तुला स्तंभन सज्जरिका भेकवता करलिप्तं स्तम्भनं करोत्यानेः । श्वासनिरोधेन तुलादिव्यस्तम्भो भवत्येव ॥४०॥ [संस्कृप्त टीका]-'लज्जरिका' लज्जरिका समंगा। 'भेकबसा' हरिवसा । 'करलिप्त' तच्चूर्णानि तद्वसपा हस्तलिप्तम् । 'स्तम्भनं करोत्यग्नेः' अग्नि स्तम्भो भयस्येव । 'श्वास निरोधेन तुलादि घ्यस्तम्भो भवत्येव' श्वासनिरोधेन घटे तुलादि व्यस्तम्भोऽवश्यं भवत्येव ॥४०॥ [हिन्दी टीका]-लाजवंती (छुईमुई) और मेंढ़क की चबों को हाथ पर लगा लेने से अग्नि का स्तम्भन और श्वास निरोध से तुला स्तंभन होता है ।।४।। __ अच्छा रोजगार चलाना निगुण्डिका च सिद्धार्था गृहद्वारेऽथवापणे । बद्ध पुण्यार्क योगेन जायते क्रय विक्रयम् ।।४१॥ [संस्कृत टीका]-'निगुण्डिका' सिप्त भूतकेशी । 'सिद्धार्थाः' श्वेतसर्षपाः । गृहद्वारे' स्ववेश्मद्वारे । 'प्रथषा प्रापणे' विषणो। 'बद्ध पुण्यार्क योगेन' पुष्यनक्षत्रे रविवारेण योगे बद्धं चेत् । 'जायसे क्रयविक्रय बस्तुकयधिकपं भवत्येव ।।४।।
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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