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________________ ( १६६ ) [ हिन्दी टीका ] - निर्गुण्डि और सफेद सरसों को पुष्य नक्षरा में लेकर घर के द्वार पर बांधने से अथवा दुकान के दरवाजे पर बांधने से अच्छा माल बिकता है ।।४१।। गर्भनिवारण पिबति प्रसूनसमये जपाप्रसूनं विमद्यं कञ्जिकया । न बिर्भात सा प्रसूनं धृतेऽपि तस्याः न गर्भः स्यात् ॥ ४२ ॥ [ संस्कृत टीका ] - 'पिबति' पानं करोति । 'प्रसून समये' विनत्रयपुष्पकाले । किम् ? ' जपाप्रसूनं' जपाकुसुमम् । किं कृत्वा ? 'विमद्य' विशेषेण मदयित्वा । कया ? 'ककिया' सौवीरेण | 'सा' नारी । 'प्रसूनं' पुष्पं । 'न बिर्भात' न धारयति । 'धृतेऽपि ' यदि कथमपि पुष्पं धरति तथापि 'तस्या न गर्भः स्यात् तस्या बनिताया गर्भ सम्भवो म भवत्येव ॥ ४२ ॥ 1 [हिन्दी टीका ] - लाल जसौंधि के फूल को कांजी ( सोवीर ) के साथ मर्द न करके रजस्वला स्त्री तीन दिन पीये तो स्त्री को गर्भ नहीं रहता है और रजस्वला भी नहीं होती है । एकबार रजस्वला भी हो जाय तो भी गर्भ तो रहता ही नहीं ||४२॥ इत्युभय भाषा कवि शेखर श्री महिलषेण सूरि विरचिते भैरव पद्मावतीकल्पे वश्यतन्त्राधिकारो नाम नवमः परिच्छेदः ||६|| इति श्री उभय भाषा कवि श्री मल्लिषेणाचार्य विरचित भैरव पद्मावती कल्प के वश्यतंत्राधिकार की हिन्दी भाषा नामक विजया टीका समाप्ता । ( नवम अध्याय समाप्त )
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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