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________________ ( १६० ) की स्याही को लेकर, उसको अरंडी के तेल, पारा और काली बिल्ली की जरायु सहित ||२३|| धूकनयनः म्बुम दितगुलिकां कृत्वा त्रिलोह सम्मठिताम् । धूत्वा तामात्मसुखे [ संस्कृत टीका ]- 'धूकनयनाम्बुदित गुलिकां कृत्या' उलूकनेत्राभ्युदितभूतद्र मोद्भवमष्यादि चतुद्र व्यारणां गुटिकां कृत्वा । 'त्रिलोह सम्मठितां' तानतारसुव गयैिः षोडश वह्निभिरिति भागकृत त्रिलोहेने सम्यग्मठितां कृत्वा । धृत्वा तामाममुखे' तां त्रिलोमठितां गुलिका स्वमुखे धारयित्वा । 'पुरुषः ' पुमान् । 'अदृश्यत्वम्' श्रदृश्यभावम् । 'प्रायाति' श्रागच्छति ॥२४॥ पुरुषोऽदृश्यत्वमायाति ॥२४॥ [ हिन्दी टीका ] - उल्लू के आंखों के पानी में गोली बनाकर, फिर उसको त्रिलोह के साथ सोलह अग्नि देकर अपने मुख में रक्खे तो अदृश्य हो जावे ||२४|| सितशरपुं खामूलं धृत्वा सितकोकिलाक्ष बीजं च । वनवसलारसपिष्टं वीर्यस्तम्भं मुखे संस्थम् ||२५|| [ संस्कृत टीका ] - सितशरपुं खामूलं' श्वेतवारणपुङ्गामूलम् । धृत्वा ' गृहीत्वा । 'सतकोकिलाक्षबीजं च' श्वेतकोकिलाक्षबीजानि च । 'बनवसलारस पिष्टम्' अरण्योद्भव ( उ ) पोक्कोरसेन पेषितं बनवला इति, कर्णाटभाषायां कासलि । 'श्रीयंस्तम्भं' शुक्रस्तम्भम् । 'मुखे संस्थम्' पुरुष मुखे संस्थम् ॥२५॥ [हिन्दी टीका ] -- सफेद सरफोंके की जड़ और सफेद कोकिलाक्ष के बीजों को जंगली पोदीने के रस में पीस कर गोली बनावे, उस गोली को मुख में रखे तो वीर्य स्तम्भन होता है || २शा वीर्यस्तंभक प्रस्थि कृष्ण वृषदंश दक्षिणजङ्घायाः शल्य खण्डमादाय । बद्धं कटिप्रदेशे वीर्यस्तम्भंनृणां कुरुते ॥ २६ ॥ [ संस्कृत टीका ] 'कृष्ण वृष दंशदक्षिण जंघायाः कृष्णविडालदक्षिण जङ्गायाः । 'शल्य खण्डं' तदस्थिखण्डम् | 'श्रावाय' गृहीत्वा । 'बध्द' कटि प्रदेश' पुंसः कटि प्रदेशे बध्वम् । 'नृणां' मनुष्याणाम् । वीर्यस्तम्भं कुरुते' करोति ॥ २६ ॥
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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