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________________ (१५५ ) [संस्कृत टीका] -'विषमुष्टिः' विषयोडिका । 'कनकम्' कृष्णघत रः 'हलिनी' कलिहलिनी 'पशाचिका' कपिच्छुका, 'चूर्ण' एतेषां चतुर्द्व व्यापां चूर्णम् । 'अम्बु देह भयम्' स्वमूत्रम् । 'उन्मत्तकमाण्डगतं' एतद् द्रव्याणां चूर्ण स्वमूत्ररहितं, कृष्णधतुरकफलभाण्डमध्ये दिनत्रयरिथतं, कमुकफलं, पूगीफलम्, तद्वश कुरुते, तत्क्रमकफलं, खादने (सति) स्त्री वशं करोति ।।१२।। [हिन्दी टीका]-पोप्ट का डोड़ा (विषमुष्टि) कनक (काला धतूरा) कालि हरी हलिनि, पिशाचिका (छोटी जटामांसी) को अपने मूत्र में मिलाकर उन्मत्तक (सफेद धतूरा) को बर्तन में सुपारी सहित रखने से वशीकरण होता है ।।१२।। मुकफलं मुखनिहितं तस्माद्दिवसत्रयेण संगृह्य। कनकविषमुष्टिहलिनी चूर्णः प्रत्येकं संक्षिप्य ॥१३॥ [संस्कृत टोका]-'नमुकफलं' पूगीफलम् । 'मुखनिहितं' सपरिये स्थापितम्। 'तस्मात्' सर्पमुखात् । 'दिवसत्रयेण संगृहा' तत्क्रमुकफलं दिनत्रयानन्तरं गृहीत्वा । 'कनकविषमुष्टिहलिनीचूर्णैः' धत्त र कमल चूर्णम्, विषडोडिकाचूर्ण, हॉलनी चूर्णम्' प्रत्येक' पृथक्पृथक् 'संक्षिप्त्वा (प्य) निक्षिप्य ।।१३॥ [हिन्दी टीका]-मरे हुऐ सर्प के मुंह में सुपारि को तीन दिन रख कर, काले धतूरे की जड़ का चूर्ण विषमुष्टि (विषटोड्डिका ) के चूर्ण और हलिनी (विशल्याकन्द) के चूर्ण के साथ पृथक-पृथक पीस कर डाले ।।१३।। खरतुरगशुनीक्षीरः क्रमशः परिभाष्य योजयेत् खाद्य । अवलाजन वशकरणं मदनकमुकं समुहिष्टम् ।।१४।। [संस्कृत टोका]-'वरतुरगशुनी क्षीरैः' रासभाश्वशुनीक्षीरः । 'कमशः' परिपाटया । 'परिभान्य' भाव्यं कनकचूर्ण खरदुग्धेन भाव्यं, विषमुष्टि चूर्ण तुरगदुग्धेन भाव्यं, हलिनी चूर्ण शुनीदुग्धेन भव्यमिति क्रमेण तत्पूगीफलं दिनत्रयेण भावनीयम, 'योजयेत् खाद्य' एतत्प्रकारसिद्ध क्रमुकं सकलं ताम्बूले योजनीयम् । 'अशलाजन वश करणं अनङ्गबारगनामधेयं मुकम् । 'संमुरिष्टं' सम्यकथितम् ॥१४॥ [हिन्दी टीका-उस पास हुए द्रव्य को अर्थात उस सुपारी को और धतूरे के चूर्ण को गधी के दूध में भावित करे, (विषमुष्टि) जहर कुचला के चूर्ण को घोडी के दूध में भाबित करे, हलिनी चूर्ग को कुतिया के दूध के साथ भाबित करे, उस सुपारी को तीन दिन भावना देनी चाहिये । इस प्रकार सिद्ध हुई सुपारी को खाद्य पदार्थ में खिलाकर अथवा पान के साथ खिलावे तो स्रीजन का वशीकरण होता है ।।१४।।
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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