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( १५४ ) 'वश्यकर्मणि' स्त्रीवश्यकर्मकरणे । 'मन्त्रज्ञः' मन्त्रविद्भिः। 'पञ्चाङ्गमल मुध्यते' एवं पञ्चाङ्गमलमिति कथ्यते ॥६॥
हिन्दी टीका]-अांख का मल, कान का मल, वीर्य, दन्तमल, जिह्वामल इन पांच प्रकार के मल का प्रयोग वश्यकर्म के लिये मंत्रवादियों ने कहा है ।।६।।
पक्त्वा चूर्णमिदं पश्चाज्जगवश्यकरं परम् । दद्यात् खाद्यानपानेषु स्त्रोपु सोश्च परस्परम् ।।१०।
[संस्कृत टीका]-'पक्त्वा' पाक कृत्वा । 'चूर्णमिदम्' एतस्कथितचूर्णम् । 'पश्चात् तदनन्तरम् । 'जगद्वश्यकर' सकलजनवश्यकरम् । 'पर' अतिशयेन । 'दद्यात्' दवातु । केषु ? 'खाद्यान्नपानेषु' खादन्नपानेषु । कयोः ? 'स्त्री'सोश्च' स्त्रीपुरुषयोः । कथम् ? 'परस्परं' एककं तदद्यात् वशीभवति ॥१०॥
[हिन्दी टीका]-पहले कहे हुये चूर्ण को पकाकर स्त्री पुरुष को परस्पर खाने के पदार्थों में मिलाकर देने से वशीकरण होता है, सकलजन वशीकरण भी होता है ।।१०॥
वश्यदीपक पञ्चपयस्तरुपयसा पोतवयण्टकरसेन परिभाव्य । तिलतलदीपतिस्त्रिभुवनजन मोहद्भयसि ॥११॥
[संस्कृत टीका]-'पञ्चपयस्तरुपयसा' न्यग्रोध-उदुम्बर-प्रश्वत्थ-लक्ष-वटी, वटस्थाने वंदुलमिति वदन्ति केचित् इति पञ्चक्षीरवृक्षक्षोरः । न केवलं पञ्चक्षीरबुक्षक्षीररेव 'पोतबयण्डकरसेन' ॥११॥
हिन्दी टीका]-दूध के पाँच प्रकार के पेड़ों का दूध (बड, गूलर, पीपल, पिलरवन और अंजीर इन पाँचों पेड़ों को दूध) और अंडे के रस में बन कपास, पाक, कमलमूत्र, सेंभल की गई और पटवन (सन) की बनी हुई (पंचसूत्री बत्तिका) बत्ती को भावना देकर काले तिलों का दीपक जलाने से तीनों लोक वश में हो जाते हैं ।।११।।
वशीकरण प्रयोग विषमुष्टिकनकहलिनीपिशाचिका पूर्णमम्बु देहभवम् । उन्मत्तक भण्डगतं मुकफलं तद्वशं कुरुते ॥१२॥