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फल को देनेवाली है और अनेक सिद्धियों को प्रदान करनेवाली है; इसिलिये कवि ने पाश्र्वनाथ जिनेश्वर को नमस्कार किया है ।
पार्श्वनाथ भगवान, जिन्होंने अनेक प्रकार से किये गये कमठ के घोर उपसर्ग को जीत लिया है, ऐसे जिनेश्वर को मेरा (श्री गगध राचार्य कुन्थु सागर का) नमस्कार है ।।१।।
पाशफलवरदराजवशकरणकरा पद्मविष्ट रा पद्मा । सा मां रक्षतु देवी त्रिलोचना रक्तपुष्पाभा १ ॥२॥
[संस्कृत टीका]-'पाशफलवर दगजवशकरण करा' पाशश्च फलं च बरदश्च गजवशकरणं च पाशफलवरदगजवशकरणानि तानि, वामोर्ध्वकरादि विद्यन्ते यस्याः सा पाशफलवरदगजवशकरणकरा । पुनः कथम्भूता? 'पद्मविष्टरा' पद्ममेव विष्टरं-पासनं यस्याः सा पद्मविष्टरा । पुनः कथम्भूता ? 'त्रिलोचना' त्रीणि लोचनानि विद्यन्ते यस्याः सा त्रिलोचना । पुनः कथम्भूता ? 'रक्तपुष्पाभा' रक्त पुष्पवद् प्राभा-दीप्तिर्यस्याः सा रक्त पुष्पाभा। का सा ? 'पद्मा' पद्मावती नाम । 'देवी' देवता । 'मां' ग्रन्थकर्तारं श्री मल्लिषेरणाचार्य 'रक्षतु' पातु ॥२॥
[हिन्दी टीका-हाथों में, पाश, फल, वरद, अंकूश को धारण करने वाली और कमल के प्रासन से सहित तीन लोचनवाली, लालपुष्प के समान शरीर वी कान्ति को धारण करनेवाली महादेवी पद्मावती मेरी रक्षा करें।
पद्मावती देवी को चौबीस भुजा सहित भी माना है और भुजाओं में चौबीस प्रकार के अलग-अलग आयुधों से सहित माना है। इसप्रकार की अनेक जगह प्राचीन क्षेत्रों पर प्राचीन मूर्तियां पाई जाती हैं । देवगढ़ सेरोनजी ग्रादि क्षेत्रों पर देखिये प्राचीन पुरातत्व विभाग में हैं। अलग से भी और पार्श्वनाथ की मूर्ति के सहित भी पद्मावती देवी की मूर्तियां पाई जाती हैं । दक्षिण भारत में भी अनेक जगह मूर्तियाँ हैं ।।२।।
तोतला त्वरिता नित्या त्रिपुरा कामसाधिनी ।
देव्या नामानि पद्मायास्तथा त्रिपुर भैरवी ॥३॥
[संस्कृत टीका]--तोतलादीनि त्रिपुर भैरवी पर्यन्तानि पदमावती देव्याः पर्यायनामानि भवन्ति--जायन्ते ॥३॥ १. रक्ताभा लोचन त्रितया' इति त पाठः ।