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________________ श्री कवि शेखर मल्लिषेरणाचार्य विरचितः भैरव पद्मावती कल्पः हिन्दी टोकाकार का मंगलाचरण पार्श्वनाथ जिनदेव को, गरगधर सरस्वती माय । श्राचार्य महावीर कीर्ति को, वंदो बारं बार ॥ भैरव पद्मावती कप को, भाषा लिखु हर्षाय । मंत्र यंत्र और तन्त्र की सिद्धि मिले सुखकार ।। संस्कृत टीकाकार का मंगलाचरण श्रीमच्चारिकायामर खेचर वधू नृत्य सङ्गीतकीति । व्याप्ताशामण्डलं मण्डित सुरपटहांष्ट सत्प्रातिहार्यम् || नवा श्रीपार्श्वनाथं जितकमठ कृतोदृण्ड घोरोपसमं । पद्मावत्या हि कल्पप्रवर विवरणं वक्ष्यते बन्धुषेः ॥ ग्रन्थकार का मंगलाचरण कमठोपसर्गदलनं त्रिभुवन नाथं प्रणम्य पार्श्वजिनम् । वक्ष्येऽभीष्ट फलप्रद भैरव पद्मावती कल्पम् ॥१॥ [ संस्कृत टीका ] -कमठोपसर्गदलनं कमठेन कृतो य उपसर्गः, तं दलय तीति, कमठोपसर्गदलनं । पुनः कथम्भूतम् ? त्रिभुवननाथम् त्रिलोकाधीश्वरम् । कम् ? पार्श्वजिनम्, श्री पार्श्वजिनेश्वरम् । | हिन्दी टीका ] -कमठ के द्वारा किये हुए उपसर्ग को दलन ( नष्ट ) कर दिया है जिन्होंने ऐसे श्री त्रिलोकी नाथ श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र को नमस्कार करके, जिससे इच्छित सुख की प्राप्ति होती है ऐसे भैरव पद्मावती कप को मैं ( श्री मल्लिषेरणाचार्य) कहूंगा । यहाँ मंगलाचरण में पार्श्वनाथ जिनेश्वर को नमस्कार किया गया है । क्योंकि पार्श्वनाथ भगवान की यक्षिणी देवी पद्मावती है और उसी देवी के अतिशय कल्प की रचना श्राचार्य श्री को करना है, जो कि अनेक प्रकार के अभीष्ट सुख रूप
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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