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( १३६ ) मन्त्र :- पिंगल पिंगल पण्णत्ति पणत्तिः ठः ठः स्वाहा ॥
| हिन्दी टीका]-ॐकार पिंगल-पिंगल ये दो पद, और पत्ति -२ ये दो पद और ठः ठः ये दो और स्वाहा, ये दर्पण मंत्र है इस मंत्र को जिनेन्द्र देव ने दर्पण मंत्र कहा है ।।१३।।
ॐ पिंगल पिंगल परगति पणराति ठः ठः स्वाहा ॥१३॥ जाप्यं भानुसहस्त्रैः सितपुष्पश्चन्द्र किरणसङ्काशैः। सिद्धयति दशांश होमादादर्श निमित्त मन्त्रोऽयम् ॥१४॥
[ संस्कृत टीका ]-'जायं' जपम् । 'भानुसहस्त्रः' द्वादशसहस्त्रः । के ? 'सित पुष्पः' श्वेतप्रसूनः । कथम्भूतः ? 'चन्द्रकिरणसङ्काशः' चन्द्ररश्मिसन्निभैः । सिद्धयति' सिद्धि याति । केन ? 'दशांशहामेन' द्वादश सहस्त्राणां दशांश होमेन । 'प्रादर्शनिमित्त मन्त्रोऽयम्' अयं मन्त्रः वर्पण निमित्तसाधनम् ।।१४।।
[हिन्दी टीका]-दर्पण निमित मंत्र की सिद्धि बारह हजार चंद्रमा के समान उज्वल सफेद पुष्पों के जाप्य करने से और दशांश होम करने से होती है ।।१४।।
चितभस्मनक विशति वारान् सम्मध १ दर्पणं पूर्वम् । शाल्यक्षतोपरि स्थित नवाम्बुपरिपूर्णनय कुम्भे ॥१५॥
[संस्कृत टीका]-'चितभस्मनैक विशति वारान् । 'सम्म' मर्दयित्वा । कम् ? 'दर्पणम्' 'शाल्यक्षतोपरिस्थित' कलमाक्षत पूजोपरिस्थित । 'नवाम्बुपरिपूर्णनवकुम्भे' प्रमोदकपरिपूर्णनषकुम्भे ॥१५॥
[हिन्दी टीका-फिर श्मशान के भस्म से उस दर्पण को इक्कीस बार स्वच्छ कर याने दर्पण को मलकर उसको शालि के चांबलों पर नवीन जल से भरे हुए कुम्भ के ऊपर दर्पण को रखे ।।१५।।
तं प्रतिनिधाय तस्मिन्न क कुलोद्भूत कन्यकायुगलम् । त्रिषु वर्णेष्वन्यप्तम स्नातं धवलाम्बरोपेतम् ॥१६॥
संस्कृत टीका]-'तं प्रति निधाय' तं प्रादर्श कुम्भस्योपरि संस्थाप्य । 'तस्मिन्' तत्कुम्भसमीपे । 'एककुलोद्भूतकन्यका युगलम्' एक कुल जनित कन्यका १. महाविध ठः ठः इति ख पाठः । २. विमशेच्च इति ख पाठः ।