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________________ ( १३८ ) [हिन्दी टीका]-कलश स्थापन की जगह, दर्यरण स्थापन की जगह और कुमारीका स्थापन की जगह इस मंत्र ॐ क्रौ क्षा क्षी शें स्वाहा का न्यास तीनों स्थानों पर करें ॥१०॥ प्रणवादि पञ्च शून्यैरभिमन्य कुमारिकाकुचस्थाने । प्रशित तयोश्च दद्याद् घृतेन सम्मिश्रतान् पूपान् ॥११॥ [संस्कृत टीका]--'प्रणवादि पञ्च शून्यः' उकारादि हां ही हू.. ह्रौं ह्रः इति पञ्चशून्यैः । 'अभिमन्त्र्य' मन्त्रयित्वा । क्य ? 'कुमारिका कुचस्थाने' पन्यास्तनयुगल स्थाने । 'तयो' द्वयोः कुमारिकयोः । 'क्व' पुनः । 'प्रशितुम्' भक्षयितुम्। 'दद्याद्' दातव्यम् । कान् ? 'पूपान्' पोलिकाः । कथम्भूतान् । 'घृतेन सम्मिश्रतान्' प्राज्ययुक्तान् ॥११॥ [हिन्दी टीका] -प्रणवादि पांच शून्याक्षर याने ॐ हाँ ह्रीं ह्रह्रीं ह्रः इन अक्षरों से मंत्रित करके, किसको मंत्रित करके ? कन्या के दोनो स्तनों को । फिर घृतमिश्रित पूआ कन्याओं को खाने को देना चाहिये ।।११।। पालक्ताभिरज्जित हस्ताङ्ग ष्ठे निरीक्षयेद् रूपम् । करनिर्वतिततलेनाङ्ग ष्ठस्नान करणेन ॥१२॥ [संस्कृत टीका ]-'पालक्ताकाभिरन्जितहस्ताङ्ग प्ठे' मन्त्रिदक्षिणकरानष्ठे । 'निरीक्षयेत्' अवलोकयेत् । किम् ? 'रूपम्' प्रतिबिम्बम् । केन ? 'करनिर्वतिततैलेन' हस्ताभ्यां मदिततलेन । कथम्भूतेन ? अङ्ग पठस्नानकररणेन' मध्यङ्ग ष्ठेन तैलाभ्यक्तेन अङ्ग ष्ठनिमित्तमिदम् ।।१२।। [हिन्दी टीका]-मंत्रवादी के दोनों हाथों से मदित किए हाए तिल के तेल से अंगुष्ठ निमित्त के द्वारा अलक्तक (महाबर) से रंगे हुए अपने अंगूठे में मंत्ररूप को देखे ।।१२।। प्रणवः पिंगुलयुगलं पण्णात्तिद्वितयं महाविध यम् । टान्सद्वयं च होमो दर्पणमन्त्रो जिनोद्दिष्टः ॥१३।। [संस्कृत टोका]-'प्रणवः' उकारः । पिंगुलयुगल' पिंगल पिगलेतिपदद्वयम् । 'पण्णति द्वयं च' परगति पण्णत्तीतिपद द्वयं च । 'महाविद्ययम्' इयं महाविद्या । 'टान्तद्वयं टकारद्वयम् । 'च' । 'होमः स्वाहा इति । 'दर्पणमन्त्रः' प्रादर्शमन्त्रः । 'जिनोद्दिष्टः' जिनेश्वर प्रणोतः ॥१३॥
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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