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________________ ( १३७ ) [हिन्दी टीका]-दर्पण अंगुष्ठ दीपकादि निमित में देखे, मंत्रवादी को नीचे लिखे मंत्र को आठ हजार जाप्य करने से सिद्धि मिलती है। उसके अाराधना का मंत्र :-ॐ नमो मेरू महामेरू ॐ (नमो धररिण महाधरणि) ॐ नमो गौरी महागौरी, ॐ नमो काली महाकाली ॐ नमो इन्द्रे महाइन्द्रे ॐ नमो जये महाजये ॐ नमो विजये महाविजये ॐ नमो पण्णसमरिंग, महापण्णसमणि अवतर--अवतर देवि अवतर--देवि अवतर ( मम चिन्तितं कार्य बहि-२) स्वाहा ।।८।। नोट :-- इस मंत्र में मूल संस्कृत पाठ में और अन्य प्रतियों में मंत्र का भेद दिखता है, संस्कृत प्रति में नमोधरगि महाधररिंग, पाठ नहीं है और मम चिन्तित कार्यं सत्यं न हि-२ पाठ भी नहीं है, किन्तु सुरत की कापडियाजी की प्रति में है । दत्वा दर्भास्तरणं दुग्धाहारं पुरा कुमारिकयोः । संस्नाप्य ततः प्रातर्धवलाम्बर भूषणादीनि ।।६।। [ संस्कृत टीका] -'बत्वा' । किम् ? 'दर्भास्तररणम्' वर्भशय्याम् । 'दुग्धाहारम्' क्षीराहारम् । कथम ? 'पुरा' निशि प्रथमयामे । कयोः ? 'कुमारिकयोः' । 'ततः' तदनन्तरम् । 'प्रातः प्रभातसमये । 'संस्नाप्य सम्यक्स्नपयित्वा । 'धवलाम्बर भूषणादोनि' श्वेतवस्त्रालङ्कररणादीनि ।।६।। [संस्कृत टीका]-दोनों कुमारिकाओं को दाभ की शैय्या और दूध का आहार रात्री के प्रथम प्रहर में देकर, प्रातः काल अच्छी तरह से कराकर सफेद वस्त्र और आभूषणादि देवे ।।६।। कलशादर्शकुमारोस्थानेष्वथ विन्यसेदिम मन्त्रम । विनयं गजयशकरणं क्षांक्षींझू कारहोमान्तम् ॥१०॥ [संस्कृत टोका]-'कलशादर्शकुमारी स्थानेषु' कलशस्थापने, दर्पण स्थापने, कुमारी स्थापने, एतेषु स्थानेषु । 'प्रथ' पश्चात् 'विन्यसेत्' कम्? 'इमं मन्त्रम् वक्ष्यमाएमन्त्रम् । “विनयं गजवशकरणं क्षा भी क्ष कारहोमान्तम' उकारं विनय इति सज्ञम, गजवशकरणं नोंकारम, क्षांकारम क्षी कारम भकारम् 'होमान्तम' स्वाहाशब्दान्तम् ॥१०॥ स्थानत्रय संस्थापन मन्त्रोद्धार :-उको क्षा क्षीतं स्वाहा। एतन्मन्त्रं स्थानत्रये विन्यसेत् ॥
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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