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प्रतवन शल्य मिश्रित विभीतकाङ्गारसद्मधूमानाम् ।
होमेन भवति मरणं पक्षाहाद् वैरिलोकस्य ॥४१॥
[ संस्कृत टीका ] - ' प्रतवन शल्य मिश्रित विभीतकाङ्गारसद्मधूमानाम्' श्मशानास्थियुक्त भूत वृक्षाद्भारगृहधूमानाम् । 'होमेन' हथनेन । 'भवति' जायते । कि तत् ? 'मरखम्' पञ्चत्वम् । कथम् ? पक्षाहात्' पक्षदिनमध्यतः । कस्य? 'वैरिलोकस्य'
शत्रुजनस्य ॥
और घर के
है ॥४१॥
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हिन्दी टीका ] - श्मशान की अस्थि (हड्डी) से सहित बहेड़ा का अंगारा घूए के काजल से होम करने से एक पक्ष में ही शत्रु का मरण हो जाता
साधक सावधान :- इस मारण क्रिया में हाथ न डाले, नहीं तो नरकों में दुःख भोगना पड़ेगा, हिंसक क्रियांत्रों को कभी नहीं करे । करेगा तो जबाबदारी साधक की ही रहेगी ।
इत्युभयभाषाकवि शेखर श्री मल्लिषेण सूरि विरचिते भैरव पद्मावती कल्पे वश्य मन्त्राधिकार सप्तम परिच्छेदः ||७||
इति श्री उभय भाषा कवि विरचित भैरव पद्मावती कल्प वश्या यंत्रा - विकार की हिन्दी भाषा नामक विजया टीका समाप्त |
| सातवां अध्याय समाप्त ।
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