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[संस्कृत टीका]-'तिलधान्यानो होमैंः' तिलादिधान्यहवनैः । कथम्भूतः ? 'प्राज्ययुतैः' घृतान्वितैः । 'भवति धान्य धनवृद्धिः स्यात् । 'मल्लिप्रसून होमात्' मल्लिकापुष्पहोमात् । कथम्भूतात् ? 'सघृतात्' गयाज्ययुक्तात् । 'वश्या नियोगिजनाः' नियोगिजना वश्या भवन्ति ।।३।।
[हिन्दी टीका]-तिल, धान्य और धूत से होम करने से धन धान्य की वृद्धि होती है, गाय के घी के साथ मल्लिका पुष्प, (मोगरा के फूल) को मिलाकर होम करने से योगीजन भी वश हो जाते हैं ।।३८।।
___ श्लोक में योगिजन वश होते हैं, लिखा है उसकी टीका संस्कृत में नियोगिजन वश होते हैं ऐसा लिखा है ।
घृतयुक्तचत फलनिकर होमतो भवति खेचरी वश्या । बटयक्षिणी च होमाद् भवति वशा ब्रह्मपुष्पारणाम् ।।३।।
[संस्कृत टीका]-'घृतयुक्तचूतफलनिकर होमतः' प्राज्ययुताम्रफलसमूहहवनात् । 'भवति' स्यात् । 'खेचरी' खेचरी नाम देवो । 'वश्या' वश्या भवतीत्यर्थः । 'बटयक्षिणी ध' बटयक्षिणी नाम देवी च। 'ब्रह्मपुष्पारणाम' पलाशपुष्पारणाम् । 'हवनात्' होमात् । 'भवति वशा' शी भवति ॥३६॥
[हिन्दी टीका] -आम के गुच्छों के साथ घी का होम करने से विद्याधरी देवी वश में होती है और पलाश (ढाक) के पुप्पों के साथ घृत का होम करने से बढ़ यक्षणी नाम की देवी सिद्ध होती हैं, वश होती है ।।३६।६।।
गह धूम निम्बराजीलवणान्वित काक पक्षकतहोमैः ।। एकोदर जातानामपि भवति परस्परं वरम् ॥४०।।
[संस्कृत टीका]-'गृह धूम' श्रागार धूम । निम्बः' पिचुमन्दः । 'राजी' कृष्णसर्षपः । 'लवणम्' सामुद्रम् । 'अन्वितः' एतयुक्त : 'काकपक्षकतहोमः' वायस पक्ष कत होमः। 'एकोदर जातानाम्' एकोदर समुत्पन्न पुरुषाणाम् । 'अपि' निश्चयेन । 'परस्परं वरम्' । 'भवति' जायते ॥४०॥
[हिन्दी टीका]-घर के धुए का काजल, नीम, काली सरसों, समुद्र का नमक, कौए के पंख सहित होम करने से एक माता से उत्पन्न होने वाली अत्यंत स्नेही मंतान में भी द्वेषभाव उत्पन्न होता है ।।४।