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[ शास्त्रवार्त्ता स्त० ६ इलो० ४
ततो विशेष्यसद्भावे 'सम्यग्ज्ञानाद्यन्त्रितत्वे सति' इति विशेषणमसिद्धम, सति चास्मिन् विशेष्यमसिद्धमिति व्यवस्थितम् । तत्र रागाद्यपचयनिमित्तता परव्यावणितस्वरूपनैर्ग्रन्ध्यस्य सिद्धा । अत एव न तद्विपञ्चभूतत्वेन वस्त्रादिप्रहस्य रागाद्युपचयं प्रति गमकत्वम्, तद्विरुद्वेन सम्यग्दर्शनाद्युपचयेन यथोक्तवस्त्रादिग्रहणस्य व्यासत्वेन तद्विरुद्धसाधकत्वात् । दृष्टान्तस्थापि परव्यावर्णितनैर्ग्रन्थ्यविपक्षभूतत्वाऽसिद्धेः साधनविकलता, न च यथोक्ताङ्गना संगमादिरप्युपसर्गसहिष्णोर्वैराग्यभावनात्रशीकृतचेतसो योगिनो रागाद्युपचय हेतुर्भरतेश्वरप्रभृतिषु तस्य तत्प्रक्षयहेतुत्वेन शास्त्रे श्रवणात् इति साध्यविकलतापि न च पक्षे हेतु सिद्धिरपि धर्मोपकरणन्वोषपत्तेरिति न किश्चिदेतत् ।
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अगर यह कहा आय कि- 'वस्त्रादिग्रहण साक्षात् अथवा परम्परा से मुक्ति की प्राप्ति में उपयोगी नहीं है, प्रत्युत उसमें विरोधी राग आदि के उपचय का हेतु है, इसलिये वस्त्रादि को ग्रहण करने वाला व्यक्ति यति नहीं किन्तु तदाभास होता है। ऐसे व्यक्ति में गृहस्थपन से कुछ विशेषता नहीं है। दिगम्बरों का यह कथन इसलिये निरस्तप्रायः है कि श्रागमोक्त विधि से वस्त्रादि का ग्रहण हिंसा प्रादि पापों से यति का रक्षण करने में निमित होने से मोक्षमार्गरूप सम्यग्ज्ञानादि का उपयहण करना है अतः वस्त्राविग्रहण मुक्ति का बाधक नहीं होता, प्रत्युत उसका त्याग हो इस युग में युक्ति मार्ग का बाधक होता है।
[ दिगम्बर के मूल अनुमान में क्षतियां |
उक्त रीति से वस्त्रग्रहण में सम्यग ज्ञान की अनुकूलता सिद्ध होने से यह बात व्यवस्थित हो जाती है कि सम्यग्जान आदि से विशिष्ट वस्त्राद्यभावरूप हेतु से रागादि के अपचय का साधन नहीं हो सकता, क्योंकि वस्त्राभावरूप विशेष्य के होने पर सम्यग्ज्ञानादिरूप विशेषण असिद्ध होगा और विशेषण के होने पर विशेष्य प्रसिद्ध होगा अतः दिगम्बरों द्वारा यणित वस्त्राभावस्वरूप "नन्थ्य" में रागादि के प्रपचय को निमित्तता महीं सिद्ध हो सकती और इसीलिये वस्त्राभावरूप नर्यथ्य का विपक्ष होने मात्र से वस्त्रादिग्रहण में रागादि के उपचय की भी गमकता नहीं हो सकती क्योंकि वस्त्रादिग्रहण रागादि के उपचय के विरोधी सम्यग् ज्ञानादि के उपचय का व्याप्य है अतः वह रागादि-उपचय के विरोधी रागादि प्रपञ्चय का ही साधक हो सकता है। तदुपरांत, प्रारम्भ में विगम्बरों ने जो यह अनुमान कहा था कि- "वस्त्रादिग्रहण मुक्ति का विरोधी है क्योंकि वह रागादि के अपचय में निमित्तसूत ( वस्त्राभावस्वरूप ) नैर्ग्रन्ध्य का विपक्षभूत है जैसे कि स्त्रीसंग " - इस अनुमान में दृष्टान्त में साधन साध्य दोनों का अभाव है । साघनशून्यता इसलिये कि स्त्रीसंग में दिगम्बर को अभिमत वस्त्राभावस्वरूप नैर्ग्रन्थ की विपक्षता प्रसिद्ध है। तथा साध्यशून्यता इसलिये कि विशिष्टशृङ्गार से अलंकृत स्त्रीयों का संग भी स्त्रीपरिषह को सहन करने वाले और हठ वैराग्यभावना से बासित चित्तवाले योगिपुरुषों के लिये रागावि की वृद्धि का हेतु नहीं होता। शास्त्र में कहा कि है भरत चक्रवर्ती श्रादि हजारों स्त्रीयों का संग करते थे फिर उन्हें रागादि की वृद्धि न हुयी, प्रत्युत रागादि का क्षय हुआ क्षीर प्ररिसाभुवन में उन्हें केवल्यज्ञान प्राप्त हुआ। तदुपरांत, वस्त्रादिग्रहण में ग्रन्थ्य