SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्या० ० टीका एवं हिन्दीविवेचन ] [ ४७ पात्रग्रहणेऽप्यमी गुणाः; तथाहि-अनाभोगेन गृहीतानां संसक्तगोरसादीनां पात्रणव विधिना परिष्ठापनेन रक्षा कृता भवति, अन्यथा तु हस्त एव गृहीतास्ते कधीयेरन् ?, तथा, पात्रं बिना करपुटगृहीतसरसववस्तुबिन्दुभिरधःपातिभिः कुन्थु-कीटिकादिजन्तुसंघातनेन, गृहस्थभाजनपरिणः च भाजनभवनादिकामहोपनिनहे न चारित्रशुद्धिः, कथं वा पात्रमन्तरेजकत्र भुजिक्रियां हस्त एवं विदधतां करेण जलाऽगालने जलगताऽसंख्येयादिसत्त्वव्यापत्तितो महाव्रतधारणोपपत्तिा। न च प्रतिगृहमोदनस्य भिचामात्रस्योपभोगात , वस्त्रपूतोदकाङ्गीकरणाचायमदोषः, तथा प्रवृत्ती प्रवचनोपघातप्रसक्त्या बोधिबीजोच्छेदात् । न च गृहस्थाशससा पूतमप्युदकं निर्जन्तुकं सर्व संपद्यते, तज्जन्तूनां सूक्ष्मत्वाद् वस्त्रस्य बाधनत्वात् , गृहिणां तच्छोधनेऽतिशयप्रयत्नानुपपत्तेश्च । न च प्रासुकोदकस्योपभोगादयमदोषः, तत्रापि सत्त्वसंसक्तिसंभवात्, करप्रक्षिप्ते तस्मिन्नप्रत्युपेक्ष्य पानोमनयोस्तव्द्यापत्तिदोषस्याऽपरिहार्यत्वात , पात्रादिग्रहणे तु तत्प्रत्युपेक्षणस्य सुकरवाद् प्रतातिचारदोषानुपपत्तेः । न च त्रिवारोवृतोष्णोदकस्यैव परिभोगादयमदोषः, तथाभूतस्य प्रतिगृहं तत्कालोपस्थायिनस्तस्याप्राप्तः, प्राप्तावपि तस्य तृडपनोदाऽक्षमत्वात् , तयुक्तस्य चानुनमसंहननस्येदानींतनयतेरातध्यानानुच्छेदात् , तस्य च दुर्गतिनियन्धनत्वात्। निक्षेप प्रावि किया में पूर्व प्रमार्जन के लिये तथा संयम के चिन्ह के लिये रजोहरण की; और वायु आदि से जन्य विकारयुक्त लिङ्ग के संवरण के लिये 'घोलपट्ट की उपयोगिता है। [ पात्रधारण से अनेक लाभ ] पात्रग्रहण में भी बहुत गुण हैं, असे पात्र से ही विधि पूर्वक पारण करने से मनाभोगपूर्वक ग्रहण किये गये गोरस आदि संसक्त पदार्थों की रक्षा सम्पावित होती है, अन्यथा यदि वे पदार्थ हाथ में हो लिये जायेंगे और उनके धारण योग्य कोई पात्र न होगा तो उन्हें किस वस्तु में रखा जा सकेगा? । इसी प्रकार पात्र के प्रभाव में हाथ की अञ्जली में जब सरस द्रव वस्तु लो जायगी तो उसको बूदें नीचे गिरेंगी, अत: उनसे कुत्थ, कोट आदि जन्तुवों का नाश होगा। यदि वे वस्तुयें गहस्थ के पात्र में लो आयेगी तो उन पात्रों के प्रक्षालन, प्रत्यावर्तन आदि कई पश्चारकर्म करने होंगे। फिर इन सब के होते यति के चारित्र्य की शुद्धि कैसे रह सकेगी? एवं पात्र के अभाव में यति एक हाथ से ही भोजन करेगा और एक से ही जल ग्रहण करना होगा, अत: जल को न छानने से जलगत असंख्येय जीवों का नाश अवश्य होगा-फिर इस स्थिति में कर-भोजी एवं करपात्री यति द्वारा पहिसारूप व्रत का धारण कैसे सम्भव हो सकेगा ? यदि यह कहा जाय कि-प्रतिगृह में भिक्षामात्र ओदन और वस्त्रपूत जल ग्रहण करने से इस दोष की प्रसक्ति न होगी', तो यह ठीक नहीं है क्योंकि१. चोलापट्ट-साधु महात्मा को परिधान के लिये अधोवस्त्र । २. अनाभोग-अन्यमनस्कता अथवा अनवधान । ३. कुन्यु-सूक्ष्म जन्तु ।
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy