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[ शास्त्रवार्ता स्त. ग्लो० ४
अत्र के वन दिगम्बरडिम्भास्तर्ककर्कशमिदं निगदन्ति । हन्त ! दन्तिन इबातिमदान्धा अशं गुरुमनादृतवन्तः ।१॥ चेत् त्रयं शिवयथः श्लथ एव प्रेक्ष्यतेऽध भवताममिलापः ।
पाससा घरमहानिमुना न अयं सितपटा घटयन्ति ॥२॥ तथाहि-रागाद्यपचयनिमित्तनैपॅन्थ्य विपक्षभूतत्त्वेन तदुपचयहेतुबस्त्रादिकग्रहणं विशिष्टशृङ्गारानुपक्ताङ्गनाङ्गसङ्गादिवत् कथं न मुक्तिप्रतिकूलम् । कथं न द्रव्यतः, क्षेत्रता, कालतः, भावतो वा कृतपरिग्रहप्रत्याख्यानस्य वस्त्रोपादाने न पञ्चममहावतभङ्गः । कथं चवं परद्रव्यरतिसाम्राज्ये स्वात्मप्रतिवन्धमात्र विधान्तश्रामण्यसद्धिः । कथं च न तस्करादिभ्यो खादे संगोपनानुसंधानेन संरक्षणानुबन्धिरौद्रध्यानावकाशः । कथं चैवमाचेलक्यपरीषहविजयः कृतः स्यात् ।। न हि सचेलकत्वमचेलकत्वं च न विरुद्धमिति । यदि च सचेलवमप्याचेलक्यमूलगुणावगुण्ठितश्रामण्यं न विरुन्ध्यात् , तदा कथं जिनेन्द्र-जिनकल्पिकादयः परमश्रमणा अचेला एव श्रते प्रसिद्धाः । असंगताऽथमेव हि ते वस्त्रादिकं परित्यक्तवन्तः, इति तद्विनेया अपि तल्लिङ्गानुकारिण एवोचिताः। ततो न सितपटा महाव्रतपरिणामवन्तः, तत्फलसाधका वा, वस्त्र-पात्रादिपरिग्रहयोगित्वात , महारम्भगृहस्थादिति चेत् ?
बारित्रत्व से मोक्ष के कारण रूप में व्यवहुत न होने से मोक्ष के प्रति प्रन्यथा सिद्ध होगा तो मोक्ष से चिरपूर्वजात तत्त्वज्ञानों में विद्यमान होने से मोक्ष के अव्याहतपूर्वतिता के अनवच्छेदक तत्त्वज्ञानत्व रूप से मोक्ष का अव्यवहितपूर्वधर्ती अन्तिम तत्त्वज्ञान भी अन्यथासिद्ध होगा प्रत. सामान्य रूप से मात्र तत्त्वज्ञान को मोक्ष का कारण कह्ना संगत नहीं हो सकता।
उक्त विचारों के निष्कर्षरूप में यह तथ्य उपलब्ध होता है कि गुरु का अनुसरण करने से जिसका शठ भाव समाप्त हो जाता है, दर्शन, ज्ञान, चारित्र ये तीनों ही उसके मोक्ष के साधन, होते हैं, इनमें किसी एक का अभाव होने पर मोक्ष-फल की प्राप्ति नहीं होती।
[ नग्नता का आग्रही दिगम्बर मत ] व्याख्याकार ने मोक्षोपाय के सम्बन्ध में श्वेताम्बर जैनों के प्रति दिगम्बर जैनों का प्राक्षेप अपने एक पद्य द्वारा प्रस्तुत किया है । पद्य का अर्थ इस प्रकार है अत्यन्त मदान्ध हाथी के समान, मजकुशकल्प गुरु का अनावर करने वाले विगम्बरी बकचे श्वेताम्बर वृक्षों के प्रति कठोर तकों से युक्त इस प्रकार की बात करते हैं कि यदि श्वेतवस्त्रधारी जैन मुनि वर्शन, ज्ञान, चरित्र इन तीनों को मोक्ष का मार्ग मानेंगे तो उन्हें मोक्ष की अपनी प्राकाङ्क्षा शिथिल कर बेनी होगी, क्योंकि वे वस्त्र परिधान कर अपरिग्रहरूप चारित्र से हीन हो जाते हैं, अतः वे मोक्ष के उक्त तीनों उपायों को कैसे संप्राप्त कर सकते हैं? !