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[ शास्त्रवार्त्ता० त०] १२ / ५४
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हस्तासां स्यात् । यतो भुजपरिसर्पाः पक्षिणः, चतुष्पदाः, उरगाथाधोगतावुत्कर्षतो यथाक्रमं द्वितीयाम्, तृतीयाम्, चतुर्थीम् पञ्चमीं च पृथ्वीं गच्छन्ति ऊर्ध्व तु सहस्रारं यावदेवेति । स्यादेतत्तेषामूर्ध्वाऽधोगतिचैषम्यं भवरवाभान्यादेव, स्त्रीणां तु न तथा नरभवे सप्तमन्दरक पृथिव्यामपि गमनसंभवात् तस्मात् स्त्रीपर्यायस्यैवायं स्वभावः यत इमाः सप्तमनरक पृथिव्यां न गच्छन्ति इति मोक्षेऽपि ता न गच्छन्ति' इति कुतो नासां स्वभाव: : इति । मैवम् तथा कारण संपत्त्यसंपत्तिभ्यामेव तथास्वाभाव्यनिर्वाहात् स्त्रीणां सप्तमनरकगमनकारणाऽसंपत्तौ तद्गमनाऽस्वाभाव्येऽपि मुक्ति
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कारण संपत्त्या तद्गमनस्वाभाव्यानाधात् ।
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एतेन 'उर्ध्वगतिपरमोत्कर्ष एवाधोगतिपरमोत्कर्ष व्याप्यः, प्रसन्नचन्द्रादौ तथा दर्शनात् तेनान्तरालिकवैपम्यदर्शनेऽपि न क्षतिः' इति निरस्तम् । किञ्च, स्त्रीणां सप्तमनरक पृथ्वीमा सिनिबन्धनाध्य
प्राप्ति की अविकल कारणमा ही नहीं होगी । इससे स्पष्ट है कि योगी में उक्त अध्यवसाय नहीं होता. फिर भी अशेषकर्मक्षय का हेतुभृत अध्यवसाय होता है। इसलिए उक्त अध्यवसान में अशेषकर्मक्षय के हेतुभूत अध्यवसाय की कारणता पत्र व्यापकता असिद्ध है।
यह भी ज्ञातव्य है कि अधोगति के सम्बन्ध में मन की वीर्यपरिणतियों में विषमता के होने से ऊर्ध्वगति के विषय में भी मन की वीर्यपरिणति में विमता की कल्पना शक्य नहीं है, जिससे कि स्त्रियों में मनोषीर्य की उत्कृष्ट शुभ परिणति का अभाव होने पर उनमें उत्तरोत्तर मनोवीर्य की उत्कृष्ट शुभपरिणति का भी अभाव सिद्ध किया जाय ! क्योंकि, भुजपरिसर्पहाथ से गति करने वाले प्राणी, पक्षी, चतुष्पद-चौपाये और उग्ग- सर्पादि, अधोगति में उत्कर्षतः कम से द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और पञ्चम पृथ्वी में जाते हैं । फिर भी ऊर्ध्वगति में सहस्रार ( आट देवलोक ) पर्यन्त जा सकते है ।
[ स्त्री में ऊर्ध्वागतम्य का प्रयोजक कारणवैपम्य !
यदि यह कहा जाय कि 'भुजपरिसर्पादि जीवों की ऊष्यं और अधोगति में जो पस्य होता है वह तो उनके जन्मस्वभाव के ही कारण होता है किन्तु स्त्रियों में यह बात नहीं है, क्योंकि मनुष्यभव में सप्तमनरक में भी मनुष्य का गमन हो सकता है, इसलिए भवस्वभाव नहीं किन्तु स्त्रीपर्याय का ही यह स्वभाव है कि उस पर्याय से खियों का सप्तमनरक में गमन नहीं होता और इसी कारण से मोक्ष में भी उनका गमन नहीं होता-ऐसा क्यों न माना जाय ? ' -तो यह ठीक नहीं है. क्योंकि स्त्री पर्याय में मोक्षगमन के कारण की सम्पत्ति और सप्तम नरक गमन के कारण की असम्पत्ति से ही स्त्री पर्याय के उक्त स्वभाव का निर्वाह हो सकता है । यतः सममनरक में गमन करने के कारणों की सम्पत्ति न होने से सप्तमनरक में न जाने का स्वभाव होने पर भी मोक्ष कारण की सम्पत्ति में मोक्ष में गमन करने का स्वभाव होने में कोई बाधा नहीं है !
[ ऊधोगतिप्रकर्ष में व्याप्यव्यापकभाव निरसन ]
इस सन्दर्भ में स्त्री मोक्षविरोधियों का यह भी कहना है कि- 'ऊर्ध्वगति का परमोत्कर्ष दृष्ट है । अधोगति के परमोत्कर्ष का व्याप्य है' यह बात प्रसन्नचन्द्र आदि के सम्बन्ध अतः आन्तरालिक वैषम्य नरकपर्याय में भुजपरिसर्पादि में द्वितीयादिनरकावधिक अधोगति प्रकर्ष