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स्या० क० टीका एवं हिन्दीविवेचन ]
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(२) एक दूसरी श्रुति का यह उद्घोष है कि जो लोग विद्या और अविद्या-ज्ञान और कर्म दोनों को उपासना करते हैं वे अविधा-कर्म से मृत्यु-पाप को पार कर विद्या-ज्ञान से अमतत्व-मोक्ष प्राप्त करते हैं । (३) एक तीसरी श्रुति है, जिससे आपाततः यह ज्ञात होता है कि 'प्रात्मज्ञान से हो मृत्यु का अतिक्रमण हो सकता है, उसके लिये अन्य कोई मार्ग नहीं है, किन्तु सावधानी से उस ध्रुति के प्रथ का विचार करने पर उसका यह तात्पर्य विदित होता है कि 'मोक्ष की कारणसामग्री में प्रारमतत्त्वज्ञान का सनिवेश निवार्य है काफि कारमतस्पता: से घटिस सामग्री को छोड़ कोई अन्य मोक्षोपाय नहीं है।' जसका तात्पर्य अन्य श्रुति यावयों से अवगत अन्य मोक्षकारण के निषेष में कथमपि नहीं हो सकता, क्योंकि सभी श्रुतिवाक्य समानरूप से प्रमाण हैं ।
[ज्ञान के साथ कितने कर्म मोक्षजनक १] ज्ञान-कर्म के समुच्चय को मोक्षजनक मानने पर यह शङ्का हो सकती है कि-'ज्ञान के साथ समस्त कर्मों के समुच्चय को यदि मोक्षजनक माना जायगा तो किसी को भी मुक्ति न प्राप्त हो सकेगी क्योंकि समस्त कर्मों का अनुष्ठान किसी भी व्यक्ति के लिये सम्भव नहीं है और यदि जान के साथ कतिपय कमों के समुच्चय को मोक्षजनक माना जायगा तो यह भी सम्भव न हो सकेगा, क्योंकि किन कर्मों के समुच्चय को मोक्ष का जनक माना जाय और किन कर्मों के समुच्चय को न माना जाय, इसमें कोई विनिगमना यानी किसी एक पक्ष को निर्णायक युक्ति न मिल सकेगो, अतः ज्ञान-कर्म समुरुषय को मोक्ष जनक मानना ठीक नहीं है'
किन्तु यह शङ्का उचित नहीं है, क्योंकि जो मोक्षार्थो जिस आश्रम में विधमान होगा, उसके मोक्ष में उस आश्रम के लिये विहित यम प्रादि साधारण कर्म तथा ईश्वरार्पण बुद्धि से किये गये यज्ञ आदि असाधारण फर्म और ज्ञान के समुच्चय को कारण मानने में कोई बाधा नहीं हो सकती।
[ भास्कर मत की समीक्षा] व्याख्याकार कहते हैं कि उक्त रीति से ज्ञानकर्मसमुच्चय का समर्थन करने वाले विद्वान भी परमार्थ-वेत्ता न होने से बाह्य हैं आगमिक मर्यादा से दूर हैं, क्योंकि कर्म अथवा ज्ञान यह प्रष्ट द्वारा मोक्ष का अनक नहीं हो सकता, क्योंकि अदृष्ट-कर्म द्रव्यरूप होने से संसार का सम्पादक होता है।
अदृष्ट द्रव्यस्वरूप है, यह बात अनुमान से सिद्ध है। अनुमान का प्रयोग इस प्रकार होता है-स्व और पर के ज्ञाता अदृष्टात्मक चेतन का, माता के होन गर्भस्थान में जो प्रवेश होता है, वह उससे सम्बद्ध अन्य निमित्त से होता है क्योंकि वह अनन्यनेय-पुरुषान्तर से अनाकृष्ट का प्रवेश है, जो अनन्यनेष-पुरुषान्तर से अनाकृष्ट का प्रवेश होता है, वह प्रवेशकर्ता से सम्बद्ध किसी अन्य निमित्त से होता है अंसे अशुचि स्थान में मत्त मनुष्य का प्रवेश अनन्यनेय (मनुष्यान्तर से अनेय) का प्रवेश होने से प्रवेशकर्ता मत्त मनुष्य से सम्बद्ध अन्य मादक द्रव्यरूप निमित्त से होता है। इस अनुमान से यह सिद्ध होता है कि किसी व्यक्ति का, माता के हीन गर्भ में जो प्रवेश होता है, यह उस व्यक्ति से सम्बद्ध अदृष्ट द्वारा होता है, ध्यक्ति और अदृष्ट का सम्बन्ध संयोग होता है, जो अदृष्ट को तव्य माने बिना सम्भव नहीं हो सकता।