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[ शास्त्रवार्ता० स्त० ११/२७
अपिच, अवस्तुवाच्यत्वेऽपसिद्धान्तोऽपि परस्येत्याह
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क्षणिकाः सर्वसंस्कारा अन्यथैतद्विरुध्यते । अपोहो यन्त्र संस्कारो न च क्षणिक इष्यते ||२७|| अन्यथा = अवस्तुनो वाच्यत्थे, ' क्षणिकाः सर्वसंस्काराः = कृतकाः सर्व उत्पत्तिमन्तः इति एतत् = उक्तम्, विरुध्यते । कथम् ? इत्याह अपोहो यद्यस्मात् न संस्कारः, अवस्तुत्वात् न च क्षणिका = नश्वरः इप्यते, तत एवेति । नन्वेवं हेतु-साध्यो भयाभावे न व्यभिचार इति क विरोधः संस्कारसामान्यमुद्दिश्य क्षणिकत्वविधाने व्याप्यव्यापकभावस्यैव लाभादिति चेत् ? सत्यम्, तथापि बुद्धिप्रतिमासरूपा पोहस्यावस्तु संस्पर्शेन विपर्ययापादने, सामर्थ्यप्रतीयमाने तुच्छापोह इवान्यत्रापि तुच्छ त्वेऽपि तथापीत्युपपत्त्या वा विरोधोद्भावने तात्पर्यात् ||२७||
निश्वय न होने पर भी जैसे उससे वस्तु का कथञ्चित् रूप में निर्णय होता है वैसे ही शब्द से भी अदृष्ट नदी आदि का कथञ्चित् रूप में बोध हो ही सकता है। किन्तु शब्द को धाचार्थअदृष्ट अर्थ का प्रतिपादक न मानने पर उसकी उपपत्ति न हो सकेगी। इस प्रसङ्ग में सौगत का यह कहना ठीक नहीं हो सकेगा कि वस्तु विषयक सविकल्पक प्रत्यक्ष अनिश्चायक है और अवस्तु विषयक निर्विकल्पक निश्चायक है । क्योंकि ऐसा मानने पर स्वयं सौगत ही वस्तुग्राही होने से निर्विकल्परूप हो जायगा । फलतः यह किसी भी बात का निश्चायक न हो स्वकेगा ||२६||
[ क्षणिका सर्वसंस्काराः - इस की अनुपपत्ति ]
२७६ कारिका में यह बताया गया है कि अवस्तु को शब्दवाच्य मानने पर बौद्ध सिद्धान्त का विरोध होगा । कारिका का अर्थ इस प्रकार है-
अवस्तु यदि शब्द का वाच्य होगा तो बौद्ध का यह सिद्धान्त कि सभी संस्कार अर्थात् सभी उत्पत्तिमान कृतक (क्षणिक) होते हैं इस बौद्ध सिद्धान्त का विरोध होगा, क्योंकि अपोह शब्द वाच्य होने पर वह भी सर्वशब्दार्थ में गृहीत होगा । किन्तु अवस्तु होने से नवह संस्कार ही है और न उसकी नश्वरता ही इष्ट है । यदि यह कहा जाय कि- " अवस्तुभून अपोह में संस्कारत्व और क्षणिकत्व रूप दोनों का अभाव होने से हेतु और साध्य दोनों का अभाव है। अतः व्यभिचार नहीं है, क्योंकि साध्यशून्य में हेतु के रहने पर ही व्यभिचार होता है । प्रकृत में यह स्थिति नहीं है । अतः विरोध की सम्भावना कहाँ है ? प्रत्युत उसके विपरीत, संस्कार सामान्य को उद्देश्य बनाकर क्षणिकत्य का विधान करने पर संस्कारस्य और क्षणिकत्ष में व्याप्यव्यापकभाव का ही लाभ होता है । " - ता इसमें उत्तर में यह कहना है कि अपोह
प्रभास रूप है. उसे अवस्तु मानते हुए शब्दवाच्य मा ने पर अवस्तुस्व से बुद्धिप्रतिभास रूपता के अभाव की आपति होगी । इसी में कारिको राध का तात्पर्य है । अथवा सामर्थ्य से प्रतीयमान वस्तु में तुच्छ अपोह की तरह अन्य तुच्छ में भी शब्दजन्य प्रतीति की उपपत्ति होगी इस प्रकार के विरोधाद्भावन में कारिका का तात्पर्य है
[ बौद्धशास्त्र निरर्थक हो जाने की आपत्ति ]
*व कारिका में मवस्तु को शब्दवाच्य मानने पर बौद्धशास्त्र आदि व्यर्थ हो जाने की आपति का उद्भावन किया गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है