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________________ स्या, के. टीका-हिन्दीधिवचन एतदेवोपपादयतिविशिष्टं वासनाजन्म बाधम्तच्च न जातुचित् । अन्यतस्तुल्यकालादेविशेषोऽन्यस्य नो यतः ।१२। विशिष्टम तथाविधविकल्पजननस्वभावम् वासनाजन्म-वासनोत्पाद एव बोधा-प्रकृतवास्नाबोधो वाच्यः; तच्च विशिष्टवासनाजन्म न जातचित्=न कदाचित् युज्यते । कथम् ! इत्याह-- अन्यतः= अन्यस्मात् सहकारिणः तुल्यकालादेः-तुल्यकालादतुल्यकालाद् वा विशेषः विशिष्टीभावः अन्यस्य%विशेषस्य नो-नेत्र, यतः यस्माद् हेतोः ॥ १२ ॥ एतदेव विकरूपदोपोपन्यासद्वारेणाहनिष्पनत्वादसवाच्च द्वाभ्यामन्योदयो न सः । उपादानाऽविशेषेण तत्स्वभावं तु तत्कुतः।१३। निप्पन्नत्वात् तुल्यकालात् सहकारिणो म विशेषः, विशेष्यस्य तदानीमनाधेयाऽतिशयत्वात् , विशेषस्य चातिशयत्वादिति भावः । असत्वाच्चाऽतुल्यकालादपि सहकारिणो न विशेषः, तदा तस्याऽसत्त्वात् , असतश्चोपकारकरणाऽयोगादिति भावः । द्वयोभवोऽपर एव विशेष इन्याशक्याहद्वाभ्याम् उपादान-सहकारिभ्याम् अन्योदयः विशिष्टापरोत्पादः न स विशेषः ! कुतः ? इत्याह-उपादानाऽविशेषेण=पूर्ववदविशिष्टकार्यजननस्वभावत्वाऽतिरस्कारेणान्योदयस्यैवाऽसिद्धेरित्यर्थः । अर्थ की प्राप्ति की भनुपपत्ति नहीं हो सकती। क्योंकि इस भ्रम में स्वलक्षण वस्तु का प्रतिबन्ध मव्यभिचार है। जिस भ्रम में वस्तु का प्रतिबन्ध होता है उससे बस्तु की प्राप्ति देखी जाती है जैसे कि मणिप्रभा में मणि के भ्रम से मणि की प्राप्ति दृष्ट है। कारिका के चतुर्थ चरण से इस परिहार का यह कह कर प्रतिरोध किया गया है शि शब्द से विशिष्ट वासना के बोध की उत्पत्ति असिद्ध होने से उक्त प्रतिपादन समीचीन नहीं है ॥ ११ ॥ १२वीं कारिका में, पूर्वोक्त अर्थ का उपपादन किया गया है। कारिका का अर्थ इसप्रकार है-पूर्व कारिका में शब्दशान से जिस वासनाबोध की उपपत्ति बतायी गयी है वह चोध विशिष्ट विकल्प के उत्पादन में समर्थ वासना के जन्म रूप दी है। और वासनाजन्म शब्दज्ञानरूपी सहकारी से कदापि नहीं हो सकता, क्योंकि वासना का जन्म सहकारी से तभी हो सकता है अष सहकारी द्वारा उपादान-मुख्य कारण में कोई विशेष सम्भव हो, जो कि उपादान के समानकालिक अथवा असमानकालिक सहकारी से साध्य नहीं है ॥ १२ ॥ [ सहकारिद्वारा उपादान में विशेषाधान असंभव ] १२त्री कारिका में प्रतिपादित अर्थ को ही प्रस्तुत १३वीं कारिका में विकल्प दोष का उभावन करते हुए कहा गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है 'सहकारी कारण से उपादान कारण में विशेष का उदय होता है और उस विशिष्ट उपादाम से विशिष्ट विकल्प की उत्पत्ति होकर प्रवृत्ति आदि का सम्पादन होता है'-यह कहने पर दो विकल्प उत्थित होते हैं-पक यह कि क्या उपादान के समकालिक सहकारी से उसमें विशेष का उदय होता है, अथवा उपादान के भसमानकालिक सहकारी से उसमें विशेष का
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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