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[शाखयाा० स. १२/११ पत्तेः, स्वलक्षणवत् । हेत्वन्तरमाह-एकप्रमात्रभावाचदृश्य-विकल्प्यप्रमातृक्षणयोरेकरवाभावाच तयोः दृश्य-विकल्प्ययोः तत्त्वाऽप्रसिद्धितः ऐक्याऽप्रसिद्धः, परस्परं स्वलक्षण इतरप्रतियोग्यभावेनैक्यस्य दुरध्यवसानत्वात् ॥ १० ॥
स्यादेतत्--विनालप्याकीकरण नामालाहालम्बनस्य विकल्प्यस्य बाघालावनत्वेन प्रतीतिः, न तु वस्तुगत्या भिन्नयोस्तयोरेकीकरणम् ; तथाचाहशब्दात्तद्वासनाबोधो विकल्पश्च ततो हि यत् । तदित्थमुच्यतेऽस्माभिन तत्स्तदसिद्धितः ॥११।।
शब्दादिति कारणे कार्योपचारात् शब्दज्ञानात् , तद्वासनाबोधः विशिष्टविकल्प वासनाबोधः विकल्पश्च-विशिष्टविकल्पश्च, ततो हि-तत एव विशिष्टवासनाबोधात्, यद्यस्मात् तत् तस्मात् इत्थमुच्यते='दृश्य-विकल्प्यावविक्रीकृत्य' इत्येवमभिधीयते अस्माभिः, विकरुपवैशिष्ट्याद् गवाद्यर्थपतीतेगवाधर्थप्रवृत्तेः, भ्रमात् प्रवृत्तस्यापि स्वलक्षणप्रतिबन्धेन प्राप्तेर्गवादिबोधनाद्यर्थ निवेदनादेश्वोपपत्तेरिति भावः । एतदाश कयाह-न-नैतदुक्तम्, ततः-शब्दात् तदसिद्धितः विशिष्टवासनाबोधाऽसिद्धेः ॥ ११ ॥
घह है दृश्य और विकल्प्य अर्थों के माता का एक न होना। आशय यह है कि जैसे बौन मत में दृश्य और विकल्प्य अर्थ क्षणात्मक हैं उसीप्रकार दृश्य का दृष्या और विकल्प्य का ज्ञाता भी क्षणात्मक है। अत पब दोनों में पेक्य न होने से दुश्य और विकल्प्य का अभेदक्षान नहीं हो सकता; क्योंकि जिसे दृश्य का दर्शन है उसे विकल्प्य का बोध नहीं है और जिसे विकल्प्य का बोध है उसे दृश्य का दर्शन नहीं है। साथ ही स्वलक्षण दृश्य और इतर सम्बन्धी विकरूप्य दोनों के परस्पर एक-दूसरे के समकालिक न होने से भी दोनों में अभेद का अध्यवसान दुःशक है ।। १८॥
(दृश्य-विकल्प्य अर्थी के एकीकरण के नये अर्थ का परिहार ] १२ घी कामिका में दृश्य और विकल्प्य अर्थों के एकीकरण के सम्बन्ध में पूर्वकारिका में उक्त मनुभपत्ति के परिहागर्थ १इन और विकल्प्य अर्थों के पकीकरण की यह व्याख्या की गयी है कि उक्त अयों के एकीकरण का आशय अभेदज्ञान नहीं है किन्तु अबाह्य-आलम्बनभृत विकल्प्य अर्थ में वाय-आलम्बनत्व का आरोप है। कारिका का अर्थ करने पहले पक बात यह कर ले कि कारण में कार्य का उपचार होता है अत: कारण बोधक शब्द से कार्य का ग्रहण सम्भव होने से कारिकागत 'शब्दात् ' का अर्थ है 'शब्दज्ञानात' । इमसे कारिका की इमप्रकार ध्याख्या सम्ध होती है कि
शब्दज्ञान से विशिष्ट विकल्प को उत्पन्न करने में समर्थ वासना का बोध होता है और उस बोध से विशिष्ट विकल्प का जन्म होता है। इसी बात को उपजीव्य बना कर बौद्ध विद्वान दृश्य और विकल्प्य अर्थों के पकीकरण का प्रतिपादन करते हैं। तदनुसार वासना बोध से उत्पन्न गो आदि विषयक विशिष्ट विकल्प से गो आदि अर्थ में प्रवृत्ति और उसके योध के लिए गो आदि शब्द का प्रयोग होता है। प्रवर्तक विकल्प के भ्रमात्मक होने पर भी गो आदि