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________________ स्या. क. टीका-हिन्दीविवेचन ) [ २६५ अत्र समाधानवा माह-- अन्ये त्वभिदधत्येवं वाच्यवाचकलक्षणः । अस्ति शब्दार्थयोर्योगस्तत्प्रतीत्यादि तत् ततः ॥९॥ अन्ये तुम्जैनाः अभिदधति एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण, यदत वाच्यवाचकलक्षणः अर्थे शब्दवाच्यतास्वभावरूपः शब्दे. चार्थवाचकतास्वभावरूपः शब्दाऽर्थयोर्योगः-संबधः अस्ति 'तत्त्वतः' इति शेषः । संवृत्या तदस्तित्वस्य परेणाप्यभ्युपगमात् । तत् तस्मात् कारणात् , ततः शब्दात् तत्प्रतीत्यादिबाच्यप्रतीति-प्रवृत्ति-प्राप्ति-निवेदनाद्यागोपालाननं प्रसिद्धं युज्यते ।। ९ ॥ अन्यश चैतदनुपपत्तिरित्याहनैतद् दृश्य-विकरप्याथकीकरणेन भेदतः । एकामात्रभावाच्च तयोस्तवाऽप्रसिद्धितः ॥१०॥ एतत् शब्दाद् याच्यप्रतीत्यादि. दृश्य-विकल्प्याथैकीकरणेन=विकल्प्येऽर्थे दृश्याथैयाध्यवसायेन न युज्यते । कुतः ? इत्याह-भेदता दृश्यविकरप्यार्थयोर्भदात् , तदभेदाध्यवसायाऽयोगात् । न च मुख्य भेदस्य सांवृताधियोऽविरोधित्वमिति वाच्यम् , मुख्यभेदशालित्वे विकरुप्यस्य दृश्यत्वा [शब्द और अर्थ के बीच तान्त्रिक सम्बन्ध-उत्तरपक्ष ] ९ वीं कारिका में शब्दार्थ के सम्बन्ध में बोच विद्वानों द्वारा कथित आपत्तियों का समाधान प्रस्तुत किया गया है। जम बौद्ध मत के विरुद्ध अन्य विद्वान जैनों का यह कहना है कि शब्द और अर्थ के मध्य तात्विक सम्बन्ध हैं, और यह है वाच्य-वाचक भाव | उसका अर्थ है अर्थ में शब्द का वाच्यस्थ सम्बन्ध है और शब्द में अर्थ का वाचकत्व सम्बन्ध है । सम्बन्ध तात्विक है ऐसा इसलिये कहा है कि यह सम्बन्ध काल्पनिक रूप में तो बौद्रों को भी स्वीकार्य है। इस सम्बन्ध के कारण ही विशिष्ट विश पुरुष से लेकर गोपालवधू तक शब्दविशेष से अर्थविशेष की प्रतीति, उसमें प्रवृत्ति, उसकी प्रानि और उसके बोधन आदि की उपपत्ति होती है ।। १ [ शब्दार्थ सम्बन्ध न मानने पर बाधक ] १० वी कारिका में यह बात बतायी गयी है कि शब्द और अर्थ के मध्य तात्विक सम्बन्ध न मानने पर शब्दविशेप से अर्थविशेष की व्यवस्थिति-प्रतीति आदि की उपपत्ति नहीं हो सकती। कारिका का अर्थ इस प्रकार है-दृश्य निर्विकल्प प्रत्यक्ष के विषयभूत स्वलक्षणवस्तु और विकल्प्य-विशिष्ट वुद्धि के विषयभूत नाम-जाति आदि से विशिष्ट कलिपत अर्थ, इन दोनों के एकीकरण-अभेदज्ञान से शब्दविशेष बाग वाच्यविशेष की प्रतीति आदि की उपपत्ति नहीं मानी जा सकती। क्योंकि उक्त दोनों अर्थों में भेद होने से उनमें अभेदबुद्धि नहीं हो सकती। यह नहीं कहा जा सकता कि उक्त दोनों में भेद बास्तव है और अभेद काल्पनिक है । अत: वास्तव भेद काल्पनिकअभेद का विरोधी न होने से दोनों में अभेदज्ञान हो सकता है।' क्योंकि यदि विकल्प्य विषयीभूत अर्थ में दृश्य का वास्तविक भेद माना जायगा तो यह भी एक स्थलक्षण अर्थ से भिन्न अन्य स्पलक्षणवस्तु के समान दृश्य हो जायगा। इसके अतिरिक्त उक्त रीति से शब्दवाच्य अर्थ की प्रतीति आदि की अनुपपत्ति का दूसरा कारण भी है; और
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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