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________________ २६४ ] [ शास्त्रवार्ता० स० १२/८ इति; [ सो ० जारी रह: : तदपि न, वितथविकल्पवासनावशात् तत्र तथाविधार्थविकल्पक्रमेणान्यापोनिषेधतिप्रवृत्तेः । यदपि 'ज्ञेय-प्रमेयादिशब्दानां न किञ्चिदपोह्यमस्ति, सर्वस्यैव ज्ञेयादिस्वभावत्वात् , इत्यव्यापिन्यपोहव्यवस्था; आंद वाऽज्ञेयं कल्पितं कृत्वा तद्व्यवच्छेदेन ज्ञेयेऽनुमानमिप्यते, तदा वरं वस्त्वेव विधिरूपशब्दार्थत्वेन कल्पितं भवेत् । इति; तदपि न, संशयादिनिरासाथ वाक्यगर्भितस्यैव ज्ञेयाविशब्दस्य प्रयोगात् , 'क्षणिकत्वेन ज्ञेया भावाः ' इत्यादिवाक्यम्थेन तेन क्षणिकवादिनाऽज्ञेयत्वादेः समारोपितस्य व्यावर्तनात् । 'कथं तर्हि 'अनित्यत्वेन शब्दाः प्रमेया नवा' ! इति प्रस्तावे ' प्रमेयाः' इति प्रयोगे प्रकरणानभिज्ञस्यापि प्रतिपत्तः केवल शब्दश्रवणात् सुबमानरूपा शाब्दी धीः ?' इति चेत् ! न कथञ्चित् । 'घटेनोदकमानयामि, उताञ्जलिना' इति प्रस्तावे तदनभिज्ञस्य ‘घटेन' इति शब्दादिव पूर्ववाक्यार्थानुसरणं विनाऽऽकानाया अपरिपूर्तेः, वाक्येपूपलवस्यार्थवतः शन्दस्य सादृश्येनापहतनुद्धेः केवलशब्दश्रवणात् केवलमर्थप्रत्ययाभिमान इति दिग् ॥ ८ ॥ इस सन्दर्भ में एक यह भी दोप दिया जाता है कि-'वस्तु मात्र क्षेय पत्र प्रमेय होने से 'ज्ञेय' और 'प्रमेय' आदि शब्दों का कोई अपोझ नहीं हो सकता। अतः इन शब्दों से अपोह का बोध न हो सकने से शब्द मात्र में अबोहवाचकन्य का सिद्धान्त अध्यापक है । और यदि कल्पित ज्ञेय मान कर उससे व्यावृत्ति रूप में ज्ञेय की बुद्धि मानी जायगी तो उसकी अपेक्षा यही कल्पना उचित होगी कि विध्यर्थक वस्तु ही शब्द का प्रतिपाय है, न कि अन्य व्यावृत्तिरूप अत्रस्तुभूत अपोह ।'-किन्तु यह भी ठीक नहीं है क्योंकि संशय आदि के निरसन के लिए वाक्य के घटक रूप में ही क्षेय आदि शब्द का प्रयोग होता है। इसीकारण 'क्षणिकत्वेन ज्ञेया भायाः-भाच पदार्थ क्षणिकरूप में झय हैं। इस वाक्य में प्रविष्ट झेय शब्द से भाव में आरोपित मणिकत्व भादि रूप से अज्ञेयत्व का निषेध होता है। 'वाफ्यगर्भस्थ ही 'झेय आदि शब्द से भर्थबोध होता है। ऐसा मानने पर यह प्रश्न होता है कि 'अनित्यत्वेन शब्दाः प्रमेया न बा ? शब्द अनित्यत्व रूप से प्रमेय हैं ? अथवा अप्रमेय हैं ?' इस प्रकरण में 'प्रमेयाः इस शब्द का प्रयोग होने पर जिस व्यक्ति को प्रकरण का ज्ञान नहीं है उसे केयल 'प्रमेय' शब्द के श्रवण से जो प्रमेयविषयक शाब्द बुद्धि होती है यह वाक्यगर्भस्थ ही झेय आदि शब्द को अर्थ बोधक मानने पर कैसे हो सकती है। इसका उत्तर है कि कथमपि नहीं हो सकती, क्योंकि जैसे 'घटेन उदकम् मानयामि उताज लिना-घर से जल लाऊँ या अञ्जलि. से ?' इस प्रकरण में प्रकरण के अनभिज्ञ घ्यक्ति को केवल घटेन' इस शब्द से पूर्व वाश्य 'घटमानय' के अनुसन्धान के बिना आकाङ्क्षा की पूर्ति नहीं होती, उसीप्रकार उक्त प्रकरण में केवल 'प्रमेया: ' शब्द का प्रयोग होने पर शाब्दबोधानुकूल आकाङ्क्षा की पूर्ति नहीं होती। और आकाङ्क्षा की पूर्ति के बिना शाब्दबोध का उदय नहीं होता। अतः यदि कोई ऐसा समझता है कि केवल 'प्रमेय' शब्द के श्रवण से केवल प्रमेय रूप अर्थ की प्रतीति होती है तो यह उसका अभिमान है जो उस दशा में होता है कि जब मनुष्य की यह बुद्धि कि 'वाक्य गर्मस्थ ही 'शेय' भादि शब से अर्थ बोध होता है' या बुद्धि वाक्य में उपलब्ध अर्थ बोधक शब्द से अपहत हो जाती है ॥ ८॥ [ बौद्ध पूर्वपक्षवार्ता समाप्त ]
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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