SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्था, क.टीका-हिरवीषिवेधन ] विम्वपतिवन्धसांवृत्तलिकोत्पत्तिरेव वक्तुं युक्ता । न चैवं विरुद्धलिङ्गयुताद् घटादिपदाद् नियतलिङ्गोत्पत्तिर्मा भूत् , घटाद्यर्थप्रतिविम्वोत्पत्तिस्तु स्यादिति वाच्यम् , रूपादिसामग्रीयिरहे घटानुत्पत्तिवद् नियतलिङ्गसामग्रीविरहे नियतार्थप्रतिबिम्यानुत्पत्तेः । संख्याया अपि वास्तवत्वे 'आपः, दाराः, सिकताः, वर्षाः । इत्यादावसत्यपि वस्तुनो भेदे बहुत्वसंख्या प्रवर्तमाना न घटेत; नापि 'वनम् , त्रिभुवनम्, जगत्, पण्णगरी' इत्यादिप्वसत्यप्यभेद एकत्वसंख्या ध्यपदिश्येत । अर्थकदार-व्यक्तावप्यवयवगतबहुल्बमादाय बहुत्वव्यपदेशः, वनशब्देऽपि धादिव्यक्तिगतजात्येक्यमादायकत्वध्यपदेशः; भाक्तं वा तत्रैकत्वमिति चेत् ? न, एक-बहुवधू-वृक्षार्थे वधूवृक्षादिपदेऽपि बहुत्वैकत्वप्रसक्तेः; प्रतीत होने पर भी वास्तव में यह मानना अधिक युक्तिसङ्गत है कि अवस्तुभूत अपोह में, लिङ्ग की प्रतीति के अनुसार व्याकरणस्वीकृत परिभाषा के आधार पर अर्थ में लिङ्ग आदि का सम्बन्ध न मानकर अर्थप्रतिविम्ब में ही काल्पनिक लिएकी उत्पत्ति मामी जाय। कहने का आशय यह है कि अर्थ तो दर असल क्षणिक स्वलक्षण मात्र होता है और उसी की वास्तविक ससा है। किन्तु उसका प्रतिबिम्ब जो विशिष्ट वुद्धि, शब्दसङ्केत तथा ग्रहण त्याग मादि व्यवहार का विषय होता है वह अवस्तु होता है। उसी में लिङ्ग आदि की प्रतीति होती है। अतः यह मानना युक्तिसङ्गत है कि वह प्रतीति उसमें काल्पनिक लिङ्ग आदि की उत्पत्ति होने से होती है। यदि यह शङ्का की जाय कि-'पुंलिङ्ग आदि से विरुद्ध स्त्रीलिङ्ग से युक्त 'घर' आदि पद से नियत लिन वोडिङ्गादि की कमी होने ५३ भी उस घट आदि अर्थप्रतिबिम्ब की उत्पत्ति होनी चाहिए जिसकी उत्पत्ति 'घ' आदि पद पंलि यक्त होने पर 'घट' आदि पद से होती हैं' - तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि जैसे घर आदि नियमेन रूपादिविशिष्ट होने के कारणा, रूप आदि की सामग्री न रहने पर घट आदि की उत्पत्ति नहीं होती, इसीप्रकार नियत लिक की सामग्री के अभाव में उस घटादि अर्थप्रतिबिम्व की भी उत्पत्ति नहीं हो सकती, जिसकी उत्पत्ति नियत लिङ्ग की सामग्री होने पर होती ।। [ संख्या की काल्पनिकता ] लिङ्ग के समान ही संख्या को भी काल्पनिक मानना उचित है क्योंकि संख्या यदि वास्तविक हो तो पक जलविन्दु, एक स्त्री, एक सिकता-कण और एक वर्षा बंद के लिए क्रम से बहुयमनान्त 'अ' शब्द, 'दार' शब्द, 'सिकता' शब्द और 'घ' शब्द के प्रयोग सङ्गत नहीं हो सकते । क्योंकि एक-एक जल आदि में वास्तव बहुत्य संख्या बाधित है। किन्तु उक्त प्रयोग होता है। अतः उसकी उपपत्ति पक-पक जल आदि में फाल्पनिक बहुत्व संख्या मान कर ही करनी होगी। इसीप्रकार संख्या को पास्तधिक मानने पर वन, त्रिभुवन, जगत् , षण्णगरी आदि शब्दों का एकवचनान्त प्रयोग भी सङ्गत नहीं हो सकता, क्योंकि धन आदि शब्दों के अर्थ अनेक हैं. अत: उनमें वास्तव एकत्व संख्या सम्भव नहीं है। इसलिए एकवचनान्त बन आदि शब्दों के प्रयोग की उपपत्ति भी उनके अर्थों में काल्पनिक पक्रत्व के द्वारा ही करनी होगी । यदि यह कहा जाय कि-'पक स्त्री में भी उसके भजनों के बहुत्व से एक नो में भी
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy