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________________ स्पा० क० टीका एवं हिन्दीषिवेधन ] [ १५ 'पर' इत्यनेन ज्ञान- क्रिययोः समुचयेन मोक्षोपायत्वं सूचितम् । विवेचयिष्यते चात्र नयमतभेदविचारः स्वयमेव ग्रन्थकृतोपरिष्टात् । ये तु ज्ञानदुर्नयावलम्बिन औपनिषदाः 'ज्ञानमेव मोक्षोपायः, तच्च साक्षिणि कल्पितम्, साक्ष्यमनृतत्वाद् नास्त्येव साक्ष्येव तु परमार्थसद् इति विचाररूपम्, योगस्तु चित्तदोपनिराकरणेनान्यथासिद्धः' इति प्रतिजानते; तेषामुत्पन्नमात्र एव तत्त्वज्ञाने संसारोच्छेदापत्तिः । न च प्रारब्धस्याऽज्ञाननिवृत्तौ प्रतिबन्धकत्वाद् नायं दोष इति सांप्रतम् अज्ञाननिवर्तकस्वभावस्य तत्त्वज्ञानस्य निवृत्त प्रतिबन्धककृत विलम्बाऽयोगात् । न हि शुक्तितत्वज्ञानेन रजतभ्रमे redit प्रतिबन्धककृत विलम्बो दृश्यते । 'दृश्यत एव "पीतः शङ्खः" इत्यादौ वैत्यानुमित्यादावपि पित्तकृतः पीतत्वभ्रमनिवृत्तिविलम्ब' इति चेत् ? तथापि साक्षात्कारभ्रमनिवृत्ती तत्त्वसाक्षात्कारे सति प्रतिबन्धककृतो विलम्बो न दृश्यत एव । न च पराभिमतं भावरूपमज्ञानमेवास्ति इति किं तत्त्वज्ञानेन निवर्त्तनीयम् १ निर्वाच्य न होने से अनिर्वाच्य है । उस अविद्या के कारण हो आत्मा के नित्यज्ञान-सुखात्मक वास्तव स्वरूप का बोध न होकर उसके अवास्तव स्वरूप नामरूपाद्यात्मक जगत् का अथबोध होता है। इस प्रकार अविद्यात्मक उपाधि हो आत्मा का बन्धन है और इस बन्धन से हो यह सर्वविध अपकर्म का भाजन-पात्र बना है, जब कभी पुण्यपुञ्ज के परिपाक से सद्गुरु का सत्संगलाभ होकर उसको कृपापूर्वक वेदान्तोपदेश से उसे अपने वास्तव स्वरूप का बोध होगा तब प्रविद्या की निवृत्ति हो जाने से शानमुखात्मक केवल आत्मा ही अवस्थित रहेगा- आत्मा की यह स्थिति ही उसकी मोक्षकालिक स्थिति होगी । व्याख्याकार कहते हैं कि यह मत भो निरस्त हो जाता है क्योंकि ज्ञानसुखात्मक ब्रह्मस्वरूप आत्मा ही अब मोक्ष होगा तब मुक्त और संसारी में कोई मेद न हो सकेगा क्योंकि उक्त मोक्ष निश्य होने से संसारदशा में भी रहेगा अतः संसारी को मुक्त भिन्न कहना सम्भव न हो सकेगा। यदि यह कहा जाय कि - ' केवल उक्त आत्मा हो मोक्ष नहीं है किन्तु अविद्यानिवृत्तिकालिक उक्त आत्मा मोक्ष है । संसार दशा में अविद्या की निवृत्ति न होने से संसारो मुक्त नहीं कहा जा सकता' - तो यह से भी ठीक नहीं है क्योंकि श्रविद्या असत्-सत् से भिन्न होने के कारण नित्यनिवृत है । C मूल कारिका में जैनवर्शनोक्त मोक्षोपाय को पर सर्वोत्कृष्ट कहकर ज्ञान और किया के समुच्चय को मोक्ष का उपाय होने की सूचना दी गई है। इस सम्बन्ध में नयों के मतभेदों का विचार ग्रन्थकार आगे स्वयं प्रस्तुत करेंगे | [ ज्ञानमात्र मोक्षोपायवादी वेदान्ती का निरसन ] जो उपनिषद्-वेदान्त के अध्येता ज्ञानरूप दुर्भय का आश्रय लेने वाले हैं, मोक्षोपाय के सम्बन्ध में उन वेदान्ती का मत है कि "ज्ञान ही मोक्ष का उपाय है और ज्ञान साझी
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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