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________________ २३२ ] [ शास्त्रवाक स्त० ११/२ 'शब्द एवाभिजल्पत्यमागतः शब्दार्थ, तच शब्दस्यार्थेन सहैक्याध्यवसानम्' इत्यन्ये । एतदपि न, असताऽर्थनकीकरणाऽयोगात्, योगे वा बुद्धिशब्दार्थपक्षप्रवेशात् । 'बुद्धिरूपमेव बाह्यविषयं तथा, गृह्यमाणबुद्धित्वेन वा गृह्यमाणं शब्दार्थः' इति पक्षस्तु निरस्तप्राय एव शाब्दप्रत्ययेनाऽध्यवसीयमानस्य शब्दार्थत्वाऽयोगाच। परेवाहुः-'अभ्यासात् प्रतिभाहेतुः शब्दो न तु बाह्यार्थप्रत्यायकः; यथैव ह्यकुशादिघातादयो हस्त्यादीनामर्थप्रतिपत्तौ क्रियमाणायां प्रतिभाहेतवो बामण शब्द का अर्थ नहीं है किन्तु ये बातें जिस सामान्य-मनुष्य में होती है वह मनुष्यसामान्य ही बामण शब्द का अर्थ है । किन्तु अन्यान्य विद्वानों के उक्त दोनों ही मत ठीक नहीं है, क्योंकि संयोग आदि सम्बन्धों का निराकरण हो चुका है । अतः तन्यत्व आदि रूपों के साथ द्रव्य आदि के सम्बन्ध को व्य आदि शब्द का अर्थ नहीं कहा जा सकता । प. सामान्य पदार्थ का निराकरण हो जाने के कारण सामान्य को भी सुवर्ण आदि शब्दों का अर्थ नहीं कहा जा सकता। इसके साथ ही दूसरी बात यह है कि उक्त दोनों ही मतों में शब्दार्थ की असत्यता अनिवार्य हो जाती है। [अभिजल्पत्र प्राप्त शब्द शब्दार्थ नहीं ] अन्य विद्वानों का मत है कि-"शब्द ही अभिजल्प होने पर शब्द का वाच्य होता है । अभिमल्प होने का मतलब है कि अर्थ के साथ एकीभूत होकर अवगत होना । कहने का आशय यह है कि जब शब्द और अर्थ में अभिन्नता का बोध होता है तब शब्द अर्थात्मना प्रतीत होने से शब्दार्थ हो जाता है किन्तु यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि असत् अर्थ के साथ शब्द का एकीकरण असङ्गत है और यदि किसी प्रकार बुद्धि के माध्यम से अर्थ के साथ शब्द के एकीकरण को सम्मत किया जाय ते 'शब्दार्थ युद्धि का है। इस पक्ष में इस मत का प्रवेश हो जायगा । कुछ लोगों का यह भी पक्ष है कि-"बायार्थ को विषय करने वाली बुद्धि किया गृह्यमाण धुद्धि के रूप में सरयमान अर्थ ही शब्दार्थ है। -'' यह भी पक्ष निरस्त जैसा ही है क्योंकि शब्द का प्रयोग बायार्थ में ही अनुभव मिद्ध है न कि उस की बुद्धि में । इस पक्ष के विरुद्ध दूसरी बात यह है कि शाब्दज्ञान से विषयीकृत अर्थ को शब्दार्थ मानना सङ्गत नहीं है। क्योंकि शब्दार्थ सिद्ध होने पर ही शमशान की विषयता होती है। अतः शब्दार्थता को शाटज्ञान के विषयता के आधीन नहीं माना जा सकता ।। [शब्द जन्य प्रतिमा से अर्थबोध-आशंका ] अन्य विद्वानों का मत है कि-" शब्द प्रतिमा को जन्म देता है, अर्थप्रत्यय को नहीं । अतः शब्दार्थ क्या है ? इस बात की घोषणा निरर्थक है। शब्द से प्रतिभा का जन्म होना अनायास समझा जा सकता है. और इस बात को इस प्रकार निरूपित किया जा सकता है कि जैसे अंकुश प्रहार आदि से हस्ती आदि को अपने कर्तव्य अर्थ की प्रतीति हस्ती आदि की प्रतिभा से होती है, और यह प्रतिभा अंकुशप्रहार आदि से उत्पन्न होती है 1 ठीक उसी प्रकार शब्द सुनने पर मनुष्य में एक ऐसी प्रतिभा का उदय होता है जिस से उसे अर्थ का बोध होता है । अतः अर्थे प्रतिभा-बोध्य है न कि शब्दबोध्य । वृक्ष मादि शब्द जो शब्दार्थ के सम्बन्धी माने जाते हैं उनसे अर्थ का बोध उनके द्वारा उत्पन्न प्रतिभा से ही सम्पन्न होता है"
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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