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________________ स्या, क टीका-हिन्दीविवेचन ] वा । ततः किम् ? इत्याह-संभवद्विषयापि स्यात् संभवदुक्तिकापि स्यात्, सदुपदेशमूलझानसामान् एवंभूतार्थकल्पना= पापादत्रेदृशी बुद्धिः' इति संभावना ।। ४० ।। नम्बपौरुषेयत्वसिद्धे विशेषदर्शनादेवोक्ताशङ्का निवर्तते, इत्यतस्तत्साधनमपि बिना सर्वज्ञं न इत्याह अपौरुषेयताप्यस्य नान्यतो घबगम्यते ।। कर्तुरस्मरणादीनां व्यभिचारा दिदोषतः ।। ४१ ।। अपौरुषेयतापि अभ्य वेदस्य नान्यतः-- सर्वज्ञादन्यस्मात् प्रमाणान् हि निश्चितम् अबगम्यते, अतीतस्य वक्तुरनुपलब्धिमात्रादभावाऽसिद्धेः । ननु चात्र हेतवः सन्तीत्येतदाशडक्याहकर्तुस्स्मरणादीनां- वक्ष्यमाणानां हेतूनां व्यभिचारादिदोषतः अनैकान्तिकाऽसिद्धत्वादिदोषदुष्टस्वात् ॥ ४१ ।। तथाहि-वेदोऽपौरुषेयः, 'कर्तुम् मण'' इति राधिकरणो देवः । अमर्यकत्वं च भारतादौ व्यभिचारि, परकीयकर्तस्मरणं च वेदेऽपि तुल्यम् । 'न तुल्यम्, वेदे विगानेन कर्तस्मरणादिति चेत् ? किमिदं विगानम् ! कर्तविशेषविप्रतिपत्तिर्वा, स्मर्यमाणकर्तविशेषे प्रकृतकार्यान्य अवश्य सम्भव हो सकती है कि वेद के अरश्य कर्ता की शंका पापमूलक है पुण्यमृतक नहीं है, क्योंकि सर्वज्ञ पुरुष को उस शंका के पापमूलकत्व का ज्ञान सम्भव होने से यह कह सकता है कि उक्त शंका पापमूलक है और उस के कथन से यह यात सर्वमान्य भी हो सकती है ॥ ४० ॥ ४१ वीं कारिका में यह बताया गया है कि सर्यक्ष के अभाव में अपौरुषेयत्व की सिद्धि नहीं हो सकती । अतः अपौरुषेयत्वरूप विशेषदर्शन से भी वेद में अदृश्यकर्तकत्व की शंका की निवृत्ति नहीं हो सकती । कारिका का अर्थ इसप्रकार है-सर्यक्ष से अन्यप्रमाणद्वारा बंद के अपौरुषेयत्व का निश्चय नहीं हो सकता। क्योंकि अनलिब्धि मात्र से अतीत अत्ता। की सिद्धि नहीं होती। अनुमान से भी वेद का अपौरुषेयत्व नहीं हो सकता, क्योंकि कर्ता का अस्मरण आदि जो अनुमान के सम्भाषित हेतु हैं वे व्यभिचार-असिद्धि आदि दोषों से ग्रस्त हैं ॥ ११ ॥ [ कर्तृ-अस्मरणहेतुक अपौरुषेयत्व का अनुमान दूषित ] जसे यदि इसप्रकार अनुमान प्रयोग किया जाय कि-वेद अपौरुषेय है क्योंकि उस के कर्ता का स्मरण नहीं होता -तो इस में हेनु साध्य का ब्यधिकरण हो जाता है क्योंकि साध्य की सिद्धि घेद में अभिमत है और हेतु वेदनिष्ठ न होकर पुरुषनिष्ठ है । अत: हेतु विरोध ( साश्य का असमानाधिकरण्य) और असिद्धि (=पक्षवृत्तित्वाभाव । से ग्रस्त है। अस्मर्यमाणकर्तफत्य हेतु का अर्थ है जिस का फर्ता स्मरणा का विषय हो तबन्यत्व-स हेतु से भी वेद में अपौरुषेयत्व का अनुमान नहीं हो सकता क्योंकि भारत आदि के कर्ता का स्मरण जिन्हें नहीं है उन की दृष्टि से भारत आदि में यह हेतु साध्य का व्यभिचारी है क्योंकि भारत आदि वस्तुतः पौरुषेय है। यदि यह कहा जाय कि-'कुछ व्यक्तियों को भारत आदि के कर्ता का स्मरण न होने पर भी अन्य व्यक्तिओं को उस के कर्ता का स्मरण होता है। अतः किसी भी व्यक्ति को कर्ता का स्मरण न होने के अर्थ में पर्यवसित-अस्मयमाणकर्तृकत्व भारत मादि
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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