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स्या. क. टीका-हिन्दीविवेचन ]
[ १६१ यश्चैतदुपपादनाय संप्रदायं परित्यज्य–'प्रतियोगितया शब्दनाशे विजातीयपवनसंयोगनाशत्वेन, स्वप्रतियोगिजन्यतासंबन्धेन नाशरवेनैव वा हेतुत्वमुपगम्य विजातीयपवनसंयोगनाशादेव जनक शब्दनाशादेव वा शब्दानां नाशः, इति पवनसंयोगस्योत्सर्गतः क्षणचतुध्यायायितया राडीपारो चतुर्थक्षा निमित्तपवनसंयोगनाशात् पञ्चमक्षणे शब्दनाशः, इति शब्दस्य चतुःक्षणस्थायितया न तृतीय क्षणचर्तिध्वंसप्रतियोगित्वरूपं क्षणिकत्वम् ; नापि निमित्तपवनसंयोगनाशक्षणोत्पन्नशब्दस्य क्षणिकतापत्तिः, निमित्तपचनसंयोगस्योत्पत्तिसंबन्धेन कार्यसहभावेन वा शब्दहेतुत्वात् ; अवच्छेदकतया तारे शुकीयककारादों वा तादृशमावस्य हेतुत्वाद वा । अत एव नैकावच्छेदेन सदृशनानाशब्दोत्पत्तिए' इति नव्य दृशा
यह भी शातव्य है कि यदि उच्चारणदेश से चल कर श्रोत्रदेश में शब्द का आगमन न माना जाएगा, तथा शब्द को क्षणिक माना जाएगा तो कत्व आदि से विशिष्ट ककारादि का लौकिक प्रत्यक्ष न हो सकेगा क्योंकि 'क' का उच्चारण होने पर दूसरे क्षण में क और कप का नियिकल्पक होगा और तीसरे क्षण में जब कत्व विशिष्ट का लौकिक प्रत्यक्ष अपेक्षित है तब 'क' का तो नाश हो गया है।
[ ककारादि के लौकिक प्रत्यक्ष की नव्यदृष्टि से उपपत्ति ] __ कुछ ऐसे भी नैयायिक हैं जो कत्वादि विशिष्ट ककार आदि शब्द का लौकिक प्रत्यक्ष उपपन्न करने के लिए सम्प्रदाय परम्परागत मान्यता का त्याग कर एक नयी इष्टि अपनाते हैं। उन का कहना यह है कि-शब्द जनक शब्द का कार्यशब्द से और चरम शब्द का जनकशब्द से नाश नहीं होता किन्तु जनक के नाश से नाश होता है। जनकनाश विजातीयपवनसयोग का भी नाश है और उत्पादक शब्द का भी नाश है । अतः उन के अनुसार प्रति. योगिता सम्बन्ध से शब्द नाश के प्रति विजातीयपवनसंयोगनाश अथवा सामान्य रूप से नाश स्वप्रतियोगिजन्यत्व सम्बन्ध से कारण है। जैसे स्व का अर्थ है विजातीयपवनसंयोगनाश अथवा पूर्वशब्द, उस की जन्यता है उत्तर शब्द में, अतः उक्तसंयोगनाश अथवा पूर्वशब्द नाश के अनु. सार उक्तसंयोगजन्य शब्द् में अथवा पूर्वेशन्जन्यशब्द में प्रतियोगिता सम्बन्ध से शब्द नाश की उत्पत्ति होती है । इस कार्यकारणभाव के अनुसार शब्द का नाश शब्द के पञ्चमक्षण में उत्पन्न होगा। अतः शब्द की स्थिति चार क्षण तक होने से उस में तृतीयक्षणसि ध्वस का योगित्वरूप क्षणिकत्व न होने से तीसरे क्षण उस का तौकिक प्रत्यक्ष होने में कोई बाधा नहीं हो सकती। इस मान्यता में उक्त संयोगनाश से शब्द के पश्चमक्षण में शब्दनाश होने का कम यह है कि उक्तसंयोग के दूसरे क्षण में शब्द उत्पन्न होगा और उसी क्षण में उक्त संयोग के उत्पादक पवनकम का नाश होगा । संयोग के तीसरे क्षण पथन में युसरा कर्म उत्पन्न होगाः चौथे क्षण में पूर्वदेश से पयन का विभाग होगा। पाँचत्रे क्षण में पूर्वपवनसंयोग का नाश होगा । छठे क्षण में यानी शब्द के पायवे क्षण में शब्द का नाश होगा।
इस कार्यकारणभाव के अभ्युपगम पक्ष में पवनसंयोग से उस के द्वितीयक्षण में उत्पन्न होने वाला शब्द तो उक्त क्रम से अपने पाँचवे क्षण में नष्ट होने से चार क्षण नक स्थायी हो सकता। पर जो शब्द उक्त संयोग से उस के नाश क्षण में उत्पन्न होगा यह तो उक्त संयोग नाश से दूसरे क्षण ही नष्ट हो जाएगा। अत: उस शब्द में द्वितीयक्षणवृत्ति यस प्रतियो