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________________ स्या का टोका एवं हिन्दी विवेचन । मेव सर्वदेहिनाम् सर्वेषामेव संसारिणां स उपायः १ । मोक्षत्रत् तदुपायस्यापि क्वाचित्कृत्यकादाचित्कत्ययोस्तुल्यः पर्यनुयोग इति भावः ॥ १॥ __ मूल-कर्मादिपरिणत्याविसापेक्षो यद्यसौ ततः। अनादिमत्त्वात्कर्मादिपरिणत्यादि किं तथा ॥२॥ प्रस्तुतवाद्येव पराशयमाशङ्य परिहरति-यन्यसौ मोक्षोपायः, कर्मादिपरिणत्यादिसापेक्षः, 'कर्मादि इत्यादिना प्रधानादिग्रहः 'परिणत्यादि इत्यादिना विवादिग्रहः, तत्सापेक्षो. त्पत्तिका ततातहि अनादिमत्वात कमादे कमांदिपरिणत्यादि कि तथाकि कादाचित्कम् , अनादेः कर्मादेः स्वपरिणत्यादायन्यापेक्षाऽभावान ॥॥ [ मोक्षप्राप्ति के उपाय का अस्तित्व हैं ?-पूर्वपक्ष ] प्रथम कारिका में कतिपय विद्वानों को ग्रह प्राश का प्रदशित की गई है कि मोक्ष की प्राप्ति का कोई उपाय न होने से मोक्ष को मान्यता हो निराधार है अतः प्रद्वैतवाद में मोक्ष के लिये उपायों के अनुष्ठान के वधस्य रूप दोष का प्रशन असंगत है कारिका का अर्थ इस प्रकार है.. नास्तिफप्राय अन्य विद्वानों का यह कहना है कि वास्तव में तो मोक्ष का अस्तित्व ही नहीं है क्योंकि उसकी प्राप्ति का कोई उपाय नहीं है। यदि यह कहा जाय कि-मोक्ष नित्य-प्राप्त है मतः उसकी प्राप्ति के उयाय की अपेक्षा न होने से उसका अभाव मोक्षाभाव का सापक नहीं हो सकता-तो यह ठीक नहीं है. क्योंकि मोक्ष के नित्य प्राप्त होने पर भी उसकी अभिव्यक्ति सो निश्य है नहीं, अत: अभिव्यक्ति का उपाय अपेक्षित है और वह उपाय है नहीं, अतः मनभिपत मोक्ष स्पृहणीय न होने से तथा मोक्षाभिव्यक्ति का उपाय न होने से मोक्ष का अस्तित्व मान्य नहीं हो सकता। यदि इस दोष के परिहारार्थ यह कहा जाय कि- मोक्ष यदि उत्पाद्य है तो उसका उपाय भी है और मोक्ष यदि नित्य और अनभिव्यक्त है तो उसकी अभिव्यक्ति का उपाय है- तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि यदि मोक्ष अथवा उसको अभिव्यक्ति का उपाय है तो सब मनुष्यों को सर्वदा सुलभ क्यों नहीं है ? इस प्रकार मोक्ष के समान मोक्ष अथवा मोक्षाभिव्यक्ति के उपायों के क्याचित्फत्व और कदाचिकत्व के सम्बन्ध में प्रश्न खड़ा है । अर्थात् यह एक जाज्वल्यमान प्रश्न है कि मोक्ष अथवा मोक्षाभिव्यक्ति का उपाय यदि नित्य हो तो उसे सवा सबको सुलभ होना चाहिये । वह किसी किसी को हो क्यों प्राप्त होता है ? और कभी कभी हो क्यों प्राप्त होता है ? और यचि उत्पाद्य है तो उसका उपाय क्या है ? और यह सबको सुलभ क्यों नहीं है ? । १।। दूसरी कारिका में वादी द्वारा उक्त प्रश्न के पराभिमत उत्तर की सम्भावना का परिहार किया गया है। कारिका का प्रथं इस प्रकार है:-यदि यह कहा जाय कि-मोक्षापाय की उत्पत्ति में कर्म आदि को परिणति अथवा प्रधान आदि के विवर्त आदि की अपेक्षा है, और यह सबको सदा सुलभ नहीं है. अत एवं मोक्षोपाय भी सबको सदा सुलभ नहीं होता- तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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