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[ शास्त्रार्त्ता स्त०६ श्लो० १
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हेतु युक्तिविलसत्सुवाचनं निर्मितोरुकुनवण्यापासनम् । भूत मावि भवदर्थेभासनं शासनं जयति पारमेश्वरम् ॥ मूल-अन्ये पुनर्वदन्त्येवं मोक्ष एव न विद्यते ।
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उपायाभावतः, किंवा न सदा सर्वदेहिनाम् ॥ १ ॥
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नवद्वैते मोक्षार्थानुष्ठानवैयर्थ्यमुक्तम् मोक्ष एव चोपायाभावाद् नास्तीति किमेतत् दूषणम् ? इति केषाञ्चिद् वार्तान्तरमाह - अन्ये पुनः नास्तिकप्रायाः वदन्ति एवं - यदुत मोक्ष एव न feed परमार्थतः । कथम् ? इत्याह- उपायाभावतः तत्प्राप्तिदेवभावात् नित्याऽवाप्तत्वेऽपि तदभिव्यक्तिहेत्वभावात् । सत्युपाये किंवा न सदा सर्वकाल
[ शंखेश्वरपार्श्वनाथ भगवान के नामोच्चारण का प्रभाव ]
जिस प्रकार यथाविधि पठित और सिद्ध की गई मन्त्रविद्या से शत्रुधों का समूह निश्चेष्ट होकर सो जाता है और निशाचरों का गण नितान्त नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार जिसकी श्राख्या से, जिसके नामोच्चारणमात्र से काम, क्रोध आदि शत्रुओं का समूह समाप्त हो जाता है और मोक्षमार्ग के कुसिद्धान्तवासना आदि विघ्न नष्ट हो जाते हैं, उस प्रभु शङ्खेश्वर के चरण कमल के स्तवन में किस पुण्यवान् प्राणी को अभिरुचि एवं निष्ठा सदा-सर्वदा के लिये अनायास जाग्रत् न होगी ? ! तापर्य यह है, कि प्रभु शङ्खेश्वर के नाम में इतना अधिक बल है कि उसके उच्चारण कर्त्ता के शत्रुओं का बल क्षीण हो जाता है, वे उसके समक्ष सुप्तवत् कुछ भी करने में प्रक्षम हो जाते हैं और उनकी इष्ट सिद्धि में सम्भावित समो विघ्न नष्ट हो जाते हैं, अतः संसार का प्रत्येक पुण्यवान् जन, जिसे भगवान् के नामोच्चारण की शक्ति का ज्ञान है, अनायास हो उनके चरण कमल के स्तवन मैं अपने आपको सदा के लिये समर्पित कर देता है और जो ऐसा नहीं कर पाता, निश्चय ही यह अधन्य है, पुष्पहीन हैं, पापात्मा है ॥२१॥
[ जिनशासन की सर्वोत्तमता ]
हेतु और युक्तियों से जिसकी सुप्रतिष्ठा फैली हुई है, जिसने बड़े बड़े दुर्नयों को निरस्त कर दिया है, जो अतीत अनागत और वर्तमान सभी पदार्थों की यथार्थ अनुभूति अवगम कराने में समर्थ है, परमेश्वर 'जिन' का वह शासन संसार का सर्वोत्कृष्ट शासन है ।
आशय यह है कि मगवान् 'जिन' अरिहंत ही वास्तव में परमेश्वर हैं, उनके द्वारा उपदिष्ट आगम ही संसार का सर्वातिशायी शास्त्र है क्योंकि उसकी सुप्रतिष्ठा हेतुवों और युक्तियों पर आश्रित है, वह केवल अन्धश्रद्धा पर आधारित न होकर हेतु और तर्कपर आधारित है, उसमें बड़े से बड़े दुर्नय का दुर्भेद्य एकान्तवादों का युक्तिपूर्वक निराकरण किया गया है। वह यतः सर्वावरणमुक्त परमेश्वरज्ञान से उद्घाटित है अतः उससे तीनों काल के समग्र पदार्थों का स्फुट एवं यथार्थबोध प्राप्त हो सकता है, यही कारण है, जिससे भगवान् 'जिन' का शासन सर्वोत्तम शासन है ।