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________________ स्या. क. टीका-हिन्दीश्वेिचन ] मामप्रमाण मानना आवश्यक है" तो यह ठीक नहीं है क्योंकि उपमान प्रमाण मानने पर भी गवयपद में गययत्वप्रवृत्तिनिमितकत्व का निश्चय उक्त सामान्यानुमान के बिना नहीं हो सकता, क्योंकि ग्रामवासी परुष का अरण्य में 'गोसशो गषयः इस प्रकार काही वयवर्शन, उपमानप्रमाणवादी को भी मानना पडता है। क्योंकि साक्ष्य दर्शन ही उस के मत में उपमान प्रमाण है । अतः इस दर्शन के अभात्र म उपमान से भी गत्रयत्वषिशिष्ट में गवयपद का शक्तियह नहीं हो सकता। और जब गयय का उक्त दर्शन ही आवश्यक है सब गश्यत्व और गोसादृश्य दोनों के समान रूप से उपस्थित होने से उपमान प्रमाण द्वारा गोसादृश्यविशिष्ट में गययपद का शक्तिग्रह हो अथवा गवयत्व विशिष्ट में गबयपद का शक्तिग्रह हो-इस में कोई विनिगमना न होने से गवयत्वविशिष्ठ में गवयपद का शक्तिग्रह नहीं हो सकता । अतः उपमानप्रमाण से मषयपद में गघयत्यप्रवृत्तिनिमित्तकान का मिश्चय करने के लिये गवयपद को गोसादृश्यप्रवृत्तिनिमित्तक मानने की अपेक्षा गमयत्वप्रतिनिमित्तक मानने में नायब है-इम प्रकार के लाघवज्ञानरूप विनिगमक की अपेक्षा है। और यह लायनज्ञान तभी हो सकता है जब यह जिवासा उत्पन्न हो कि गवयपद गोमादृश्यप्रवृत्तिनिमित्तक है अथवा गषयत्व प्रवृत्तिनिमित्तक है। और यह जिज्ञासा प्रवृत्ति-निमित्तविशेष की जिज्ञासारूप है अतः इस का उदय तभी हो सकता है जब गवय पद में सामान्यरूप में सम्प्रवृत्तिनिमित्तकन्त्र का निश्चय हो । अतः उपमानप्रमाणवादी को भी गवयपद में सप्रवृत्तिनिमित्तकत्व के सामान्यानुमान की अपेक्षा होने से यह नहीं कहा जा सकता कि 'उक्त अनुमान के अभाव में भी उपमानप्रमाण से गवयपद में गवय वप्रवृत्तिनिमित्तऋत्य का निश्रय हो सकता है। और जब उक्त अनुमान और उक्त लाघवशान जपमानप्रमाणवादी को भी अपेक्षित होता है तो उक्त लावयज्ञानसत्कृत उक्त अनुमान से ही गवयपद में गवयत्यप्रवृत्ति निमित्तफत्य का निश्रय संभव होने से जगमानप्रमाण की कल्पना निरर्थक है।" [अनुमान से गवयपद की शक्ति का ग्रह असंभव-नेयायिक ] अब नैयायिक विद्वान कहते हैं कि-उपमान विरोधी का उक्त कथन सभ्यर्थ नहीं है, क्योंकि गवयपत्र में सप्रवृत्तिनिमित्तकत्व का जो मामान्य अनुमान बताया गया है, उस में गवयत्वप्रवृत्तिनिमित्तकत्व की अनुमति नहीं हो सकती, क्योंकि उस सामान्यानुमान के लिये अपेक्षित व्याप्तिज्ञान का आकार यही है कि-'जो पद होता है वह (सामान्यरूप से) सप्रवृत्तिनिमितक होता हैं' न कि जो पद होगा है वह (विशेषरूप से) गवयत्यप्रवृत्तिनिमित्तक होता है।' क्योकि पदत्व घटादिघद में गवयन्धप्रवृत्तिनिमित्तकस्य का प्यभिचारी है 1 इस प्रकार उक्त सामान्यानुमान में अपेक्षित व्याप्तिान अब सप्रवृत्तिनिमित्तकात्य में ही पदत्य की व्यापकता को विषय करता है और मययत्वप्रवृत्तिनिमित्तकाल में नहीं करता तो उस व्याप्तिान से गयत्यप्रवृत्तिनिमित्तकत्व की अनुमिति फैल हो सकती है? क्योंकि यह नियम है-जो व्याप्तिज्ञान जिस रूप से साध्य में हेतुब्यापकता को विषय करता है म व्याप्तिज्ञान से उस रूप से ही साध्य की अनुमिति होती है। हेतु के व्यापकतानवच्छेदकरूप से माध्य. अनुमिति में प्रकार नहीं होता। सामान्थानुमान के बाद होने वाले उक्त व्यतिरेको अनुमान से भी गवय पद में गवयवप्रवृत्ति निमित्तकत्व की अनुमिति नहीं हो सकती क्योंकि उस अनुमान द्वारा सीधे गवयत्व प्रवृत्तिनिमितकत्व ही साध्य है और वह स्वयं अप्रसिद्ध है और अप्रसिद्धयस्तुमकारक कोई ज्ञान नहीं हो सकता, क्योंकि तम्प्रकारकवुद्धि में तद्विषयक शान कारण होता है।
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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