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[ शामवार्त्ता० स्त० २० / १६
गोसादृश्य सामानाधिकरण्येन गवयपदवाच्यत्वबोधजननात् जनितान्वयबोधतयाऽनाकाङ्गत्वेन तस्य लक्षणीय बोधयितुमसमर्थत्वात् । ननु तथापि ' गवयपद सप्रवृत्तिनिमित्तकम्, पदत्वात्' इति सामान्यतोदृष्टमितरबाधात् लाघवाच्च गवयत्वप्रवृत्तिनिमित्तकत्वबोधकमस्तु अस्तु वा 'गवयत्वप्रवृत्तिनिमित्तकं तत्, इतराऽप्रवृत्तिनिमित्तत्वे सति सप्रवृत्तिनिमित्तत्वादिति व्यतिरेक्येव तथेति चेत् ? न, अनुमितेर्व्यापकतावच्छेदका ऽप्रकारकत्वात् द्वितीये साध्याप्रसिद्धेश्व ।
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द्वारा उस वाक्य से ही उसे गवयत्वविशिष्ट में गवयपद का शक्तिग्रह हो सकता है। अतः उस शक्तिप्रह के अनुरोध से भी उपमानप्रमाण की कल्पना नहीं हो सकती " तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि उक्तवाक्य से गोसादृश्य से उपलक्षितअर्थ में गवयपद की शक्ति का बोध हो सकता है | अतः उक्तवाक्य से लक्षणा द्वारा बोध की उत्पत्ति नहीं मानी जा सकती, क्योंकि लक्षणा तभी मान्य होती है जब शक्ति द्वारा वाक्यार्थबोध नहीं हो पाता, किन्तु जब शक्ति द्वारा कोई या योज वाक्य अर्थान्तर में (दूसरे अर्थ में) निराकाङ्ग हो जाने से लक्षणा का आश्रयण नहीं हो सकता ।
[ अनुमान से गवयपद की शक्ति का ग्रह - उपमानप्रतिपक्षी ]
उपमानविरोधी लोगों की ओर से यदि यह कहा जाय कि 'उक्तवाक्य से गवयत्व विशिष्ट में गवयपद का शक्तिग्रह न होने पर भी अनुमान से गवयपद का शक्तिग्रह हो सकता है । जैसे, ग्रामवासी पुरुष के अरण्य में जाने पर तथा गयय का दर्शन होने पर उसे यह अनुमान हो सकता है कि गवयपद सप्रवृत्तिनिमित्तक अर्थात् किश्चिर्मविशिष्ट का वाचक है क्योंकि वह पद है । जो पद होता है वह प्रवृत्तिनिमित्तक होता है ।" यदि यह कहा जाय कि - " इस अनुमान से तो केवल इतना ही सिद्ध हो सकता है कि गवयपद का कोई प्रवृत्तिनिनित्त है, किन्तु यह नहीं सिद्ध हो सकता कि गवयत्व ही गवयपद का प्रवृतिनिमित्त है। अतः इस सिद्धि के लिये उपमान प्रमाण मानना आवश्यक है " तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि गवयत्वभिन्न गोवादि जातियों में गवयपद की प्रवृत्तिनिमितता का बाधज्ञान है और गोसादृश्य आदि की अपेक्षा को गवयपद का प्रवृत्तिनिमित्त मानने में लाघवज्ञान है। अतः इन दोनों ज्ञानों के सहयोग से प्रवृतिनिमित्त के साधक उक्त सामान्य अनुमान से भी यह अनुमितिस्वरूप निश्चय हो सकता है कि गवयत्व ही गवयपद का प्रवृत्तिनिमित्त है। दूसरे भी एक अनुमान से rores में ere प्रवृत्तिनिमित्त होने का निश्चय हो सकता है। जैसे- गवयपद में समयत्तिनिमित्तत्व के सामान्यानुमान के बाद यह अनुमान हो सकता है कि ' गवयपद् गवयत्वप्रवृत्तिनिमितक है क्योंकि गवयन्व से इतरधर्म उस का प्रवृत्तिनिमित्त नहीं है किन्तु वह प्रतिनिमित्तक है, जो गवयत्वप्रवृत्तिनिमित्तक न हो किन्तु सप्रवृत्तिनिमित्तक हो यह गवयत्व से भिन्न प्रवृत्तिनिमित्त से शून्य नहीं होता. जैसे, घट आदिपद गवयत्य प्रवृत्तिनिमित्तक नहीं हैं तो यह गवयत्व से भिन्न प्रवृत्तिनिमित्त से शून्य भी नहीं है, क्योंकि गवयत्यभिन्न घटत्व आदि उस का प्रवृत्तिनिमित्त विद्यमान है।' इस व्यतिरेकी अनुमान से भी गवयपद में गवयत्यप्रवृत्तिनिमित्य का निश्चय हो सकता है।
यदि यह कहा जाय कि-" अरण्य में गद्ययदर्शन होने पर ग्रामवासी पुरुष को अरण्यबाली पुरुष के पूर्वश्रुत वाक्यार्थ का स्मरण होने मात्र से ही उक्त अनुमान के बिना भी प्रवृत्तिनिमित्तकत्व का निश्चय होता है अतः उस की उपपत्ति के लिए उप
पद में