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________________ ६५ ] [ शास्त्रवार्ता० त० २०/१२ किञ्च, मामाष्याऽनिश्चयेऽपि कोट्यस्मरणादिना संशयाभावाद् निष्कम्पप्रवृत्त्युपपत्तेर्व्यभिचारादपि न तत्र प्रामाण्यनिश्चयस्य हेतुत्वम् । प्रेक्षापूर्वप्रवृत्तौ तु बाधपूर्वनिश्वये विशेषदर्शनस्येव प्रामाण्यनिश्चयस्य हेतुत्वं स्यादपीति । वस्तुतः प्रवृत्तावप्रामाण्यज्ञानानास्कन्दितस्यैवेष्टज्ञानस्य हेतुत्वाद हेतुतावच्छेदकविघटकाप्रामाण्यज्ञानापनयनायैव प्रामाण्यनिश्चयादरः । तदिदमुक्तम्- 'तद्विषयसंशयापगम एवं प्रयोजनम्' इति । अधिक्रमस्मत्कृतश्रमारहस्यादनुसंश्रेयम् । विशेष समय में किसी विशेष विषय के बारे में ज्ञान होता भी है और प्रेक्षावान नहीं भी होता है । कहने का आशय यह है कि जैसे तृण, अरणि आदि से उत्पन्न अग्नि में विभिन्न जातिमसा का दर्शन न होने से, तृण आदि को विभिन्नजातीय अग्नि का कारण नहीं माना जाता जैसे ही प्रामाण्यसंशय एवं प्रामाण्यनिश्चय से होने वाली प्रवृत्तियों में भी विभिन्नजातीयता का अनुभव न होने से उन्हें भी विभिन्नजातीयप्रवृत्ति का कारण नहीं माना जा सकता। फिर भी प्रेक्षावरण के क्षयोपशम के रहने पर होनेवाली प्रवृत्ति और उसके अभाव में होनेवाली प्रवृत्तियों में क्रम से प्रेक्षावत्प्रवृत्तित्व तथा अप्रेक्षावत्प्रवृतित्वरूप वैलक्षण्य का परिहार तो नहीं ही हो सकता है। अतः यह निःशङ्कभाव से कहा जा सकता है कि प्रामाण्यसंदेह से प्रवृत्त होनेवाला मनुष्य उस वक्त प्रज्ञावान नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसे प्रेक्षावरण का क्षयोपशम नहीं प्राप्त है और प्रामाण्य निश्चय में प्रवृत्त होनेवाला पुरुष उस वक्त प्रज्ञावान कहा जा सकता है क्योंकि उसे उक्त क्षयोपशम प्राप्त है । यदि यह कहा जाय कि प्रवृत्ति में सकम्पत्व और निष्कम्पत्व यह दो विलक्षणधर्म अनुभव सिद्ध हैं अतः सकम्पप्रवृत्ति के प्रति प्रामाण्यसंशय को तथा निष्कम्पप्रवृत्ति के प्रति प्रामाण्यनिश्चय को कारण मानने में कोई दीप नहीं है तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि कम्प और अकम्प ये प्रवृत्ति के स्वाभाविक धर्मभेद नहीं है किन्तु 'फल के अवश्यम्भाव की सम्भावना के अभाव से उत्पन्न भय से होनेवाली प्रवृत्ति सकम्प होती है और उक्त भय के अभाव में होनेवाली प्रवृत्ति निष्कम्प होती है - इस व्यवस्था के अनुसार प्रवृत्ति का सकम्पन्त्र और निष्कम्पत्य अन्यमूलक होने से प्रवृत्ति का स्वाभाविक विशेष नहीं है । [ निष्कम्पप्रवृत्ति में श्रामाण्यनिश्रय अहेतु ] दूसरी बात यह भी है कि कोटि का स्मरण आदि न होने की दशा में प्रामाण्य का संशय न होने पर प्रामाण्यनिश्रय के अभाव में भी निष्कम्प प्रवृत्ति की उत्पत्ति होती है, अतः व्यभिचार होने से निष्कम्पमवृत्ति के प्रति प्रामाण्यनिश्चय को कारण नहीं माना जा सकता । डाँ, केवल यह माना जा सकता है कि जैसे बाधपूर्वक निश्रय में विशेषदर्शन कारण होता हैं वैसे ही प्रेक्षापूर्वक प्रवृति में ग्रामाण्य का निश्चय कारण हो सकता है। सच बात तो यह है कि अप्रामाण्यज्ञान से अनाक्रान्त 'इष्टयस्तु का ज्ञान' ही प्रवृत्ति का कारण होता है। अप्रामाण्यज्ञानाभावरूप हेतुतावच्छेदक को विघटित करनेवाले अप्रामाण्यंज्ञान के अपनयन में प्रामाण्य निषय की अपेक्षा होती है । इस तथ्य को दृष्टिगत रख कर ही कहा गया है कि प्रामाण्यसंशय को निवृत्त करना ही परतः प्रामाण्यग्रह का फल है। इस विषय में अधिक जिला की पूर्ति व्याख्याकार के ' प्रमारहस्य' ग्रन्थ से की जा सकती है ।
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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