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________________ ४२] [शास्त्रपार्ताः स्तः १०/१५ स्वमुपाधिः, अभ्यासेन घटसाक्षात्कारविषयायां दण्डजन्यतया दण्डसंबन्धितायां व्यभिचारेण साध्याव्यापकत्वात् । एवमस्मदादीनां घटसाक्षात्कारो विश्वसंबन्धितांदशे दोषप्रतिबद्धः, तद्ग्राहित्वे सति तद्धर्माप्राहित्वात् , श्वैत्याग्राहिशङ्खप्रत्यक्षवत् । न चात्र दृष्टान्ते साध्यवैकल्यम्, शङ्खप्रत्यक्षस्य श्वेत्यांशे दोषाऽप्रतिबद्भूत्वात् , श्वेत्याभावज्ञानेनैव श्वेत्यज्ञानानुदयात् , श्वैत्याभावग्रहजनकदोषस्य श्वैत्यज्ञानप्रतिबन्धकत्ये विनश्यदबस्थदोषेण यत्र श्वेत्याभावग्रहो जनितस्तत्र श्वेत्याभावज्ञानोत्पत्त्यनन्तरं श्वैत्यज्ञानोपत्तिप्रसङ्गादिति वाच्यम् । तदा बाह्यदोषापगमेऽप्यान्तरदोषानपगमात् आन्तरदोषापगमस्य कार्यकोन्नयत्वात्, इतरहेतूनां तदपगम एवं व्यापारात्, तस्य च दोषस्य क्वचित् पित्तादिवदेवपगमात् ; सिध्यति सर्वज्ञः । तदिदमाह-इति हेतोः नानुमानं न विद्यते-किन्तु विद्यत एव सर्वझेऽनुमानम् ॥१४॥ [ हेतु में उपाधि की शंका का निरसन ] ___ इस अनुमान के सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता कि-"घटसाक्षात्कार में उसी पदार्थ का भान होता है जिस के साक्षात्कार की सामग्री, घटसाक्षात्कार की सामग्री के साथ नियम से उपस्थित होती है । अतः 'घटसाक्षात्कारसामग्री नियतसाक्षात्कारसामग्रीकत्व' उपाधि है क्योंकि यह घटसाक्षात्कारप्रिंषयत्नरूप सादर की व्यापक है और जिस पदार्थ के साक्षात्कार की सामग्री घटसाक्षात्कार की सामग्री के साथ नियम से नहीं उपस्थित होती एस घटसम्बन्धी पदार्थ में घटसम्बन्धिस्वभावत्वरूप माधन की अव्यापक है"। क्योंकि वट के दण्डजन्य होने से घट में दण्डसम्बन्धिता होती है और वह अपने साक्षात्कार के लिये अन्य सामग्री का सनिधान न होने पर भी अभ्यासवश घटसाक्षात्कार का विषय होती है, अत: घटसाक्षात्कारमामग्रीनियतसामग्रीकल्वरूप उपाधि घटनिष्ठदण्डसम्बन्धिता में घटसाक्षात्कारविपयत्व रूप साध्य की अध्यापक है, व्यापक नहीं है। [किसी एक घटसाक्षात्कार में विश्वविषयकत्व की सिद्धि ] इस अनुमान के सम्बन्ध में यह शङ्का कि-'घटसम्वधिस्त्र भारता से विश्व में घटसाक्षा. कारविषयता का साधन नहीं हो सकता, क्योंकि सामान्य मनुष्य का जो घटसाक्षात्कार सिद्ध है उस की स्पष्टताख्यविषयता विश्व में नहीं है और यदि प्रसिद्ध, घटसाक्षात्कार से अन्यसाक्षात्कार की विषयता का साधन किया जायगा तो साध्याप्रसिद्धि होगी'।-नहीं की जा मकती, क्योंकि उक्त अनुमान में किसी विशेष घटसाक्षात्कार का साध्यक्षि में प्रवेश नहीं है किन्तु बरसाक्षात्कार सामान्य का प्रवेश है। अतः सामान्य मनुष्य के घटसाक्षात्कार में दोषषश विश्व का भान न होने पर भी दोषमुक किसी पुरुष के साक्षात्कार में विश्व का स्पट भान भभव होने से उन अनुमान में कोई बाधा नहीं है। सामान्य मनुष्य के घटनाक्षात्कार में विश्व का अस्पष्ट भान दोषवश नहीं होता यह बात अनुमान से सिद्ध है। अनुमान का प्रयोग इस प्रकार है कि- सामान्य मनुप्यों का घटसाक्षात्कार विश्वसम्बन्धिता अंश में दोष से प्रतिबद्ध है क्योंकि घट का ग्राहक होने पर भी उस के विश्वसम्बन्धिलारूप धर्म का ग्राहक नहीं है । जो साक्षात्कार जिम वस्तु का ग्राहक होते हुये भी उन के जिस धर्म का ग्राहक नहीं होता उस धर्माश में वह दोष से प्रतिबद्ध होता है जैसेश्वतरूप को ग्रहण न करने वाला शंखः पीत:-शंख पीला है' यह साक्षात्कार शंख का ग्राहक ।
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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