SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ शास्त्रवात० स्त० १०/१४ , इति चेत् ? अयुक्तमेतत् इत्थं कल्पनायां स्वरूपमात्र संवेदना दंद्वैत पर्यवसाने व्यवहारोच्छेदात्, तद्भिया बहिष्पदार्थाभ्युपगमे च तन्त्रियतसर्व संबन्धिताया अप्यवश्याभ्युपेयत्वात् अन्यथा नियतस्वरूपासिद्धेः । न चातिरिक्तैव सर्वसंबन्धिता न तु स्वाऽपृथग्भूतेति वाच्यम् अत्यन्तभेदे संबन्धाऽभावात, भावे वाऽनवस्थानात् । तथा च तत्पदार्थपरिज्ञान तस्य विशेषणभूता सर्वसंबन्धितापि ज्ञातैव, केवलमस्मदादिज्ञाने तद्विपयत्वमनुमीयते । अनुमेयं नभ्यासदशा यामि तर पदार्थ संबन्धित्वम्, अभ्यासदशायां तु यत्र क्षयोपशमलक्षणोऽभ्यासस्तद ( ( 21 )ग्न्यादिजन्यत्वरूपमम्न्यादिसंबन्धित्वं धूमादेः प्रत्यक्षतोऽपि प्रतीयते । इत्थं च 'विश्व कस्यचित् घटसाक्षात्कारविषयः, घटसंबन्धिस्वभावात्, एतदभूतलवत्' इत्यनुमानमपि सर्वज्ञे सर्वपदाक्षितं द्रष्टव्यम् । विपयता च विषयांशे स्पष्टताख्याऽभिमता, तेन नास्मदादिना सिद्धसाधनम् अर्थान्तरं वा । न चात्र घटसाक्षात्कारनियतसाक्षात्कारसामग्रीक ૨૦ जिन वस्तुओं से किसी कार्य की उत्पत्ति होती है उन वस्तुओं के साथ तो कार्य के सम्बन्ध की कल्पना आवश्यक है क्योंकि असभ्य वस्तुओं से कार्य की उत्पत्ति मानने पर सब वस्तुओं से सब कार्यों की उत्पत्ति का प्रसंग हो सकता है। किन्तु जो पदार्थ जिस का कार्य नहीं है उस के साथ उसके सम्बन्ध की कल्पना नियुक्तिक है। अतः सर्वेपदार्थसम्बन्धि किसी पदार्थ का स्वभाव नहीं हो सकती क्योंकि पदार्थ को सर्वपदार्थसम्बन्धी मानने में कोई युक्ति नहीं है-" [शंका का प्रत्युत्तर ] तो यह कथन असंगत है, क्योंकि पदार्थ के सम्बन्ध में ऐसी कल्पना करने पर पदार्थ के स्वरूप मात्र का ही प्रत्यक्ष होगा क्योंकि पदार्थ के स्वरूप से अतिरिक्त उसका और कोई स्वभाव सिद्ध नहीं होता । फलतः अद्वैतमात्र में प्रदार्थ का पर्यवसान हो जाने से लोकव्यवहार का उच्छेद हो जायगा, क्योंकि उस की उपपत्ति पदार्थों के परस्परभेद पर ही निर्भर है। यदि व्यवहार लोप के भय से प्राथपदार्थ की सत्ता स्वीकार की जायगी तो बाह्यत्य से उस की नियतसर्वसम्बन्धिता भी अवश्य स्वीकार करनी होगी क्योंकि उसके बिना वास्तु के नियत स्वरूप की सिद्धि नहीं हो सकती । कहने का आशय यह है कि जो भी बाह्य वस्तु होती है यह किसी न किसी रूप में अभ्य समस्त पदार्थों से सम्बद्ध होती है। जैसे एक घट, दण्ड-चक आदि से जभ्य होने से, उन से सम्बद्ध होना है। जलाहरण आदि प्रयोजनों का साधक होने से उन प्रयोजनों से सम्बद्ध होता है । अपना उपयोग करने वाले पुरुषों के सुखादि का साधक होने से उन पुरुषों से भी सम्बद्ध होता । और जिन पदार्थों के साथ इसप्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं है उन पदार्थो सेवि होने के कारण बैलक्षण्य द्वारा उन सब पदार्थों से भी सम्बद्ध होता है। इसप्रकार usपदार्थ का नियतस्त्ररूप सिद्ध होता है । सर्वसम्बन्धिता भी प्रत्येक वस्तु के अस्तित्व के साथ नियम होने से प्रत्येक वस्तु की अस्तिता उस की सम्बन्धिता की अनुमापक हो जाती है। [ सर्वसम्बन्धिता यह पदार्थ से सर्वथा अतिरिक्त नहीं है ] यदि यह कहा जाय कि ' उकरीति से पदार्थ में सर्वसम्बन्धिता की सिद्धि भले हो, किन्तु पदार्थ से अतिरिक्त ही होती है। पदार्थ से अथभूत यानी 'पदार्थ के स्वरूप में अनुमि
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy