________________
स्या. क, टीका-हिन्दी विवेचन ]
___अथ सम्बन्धिस्वभावता पदार्थस्य स्वरूपमेव न भवति, यत् केवलं प्रत्यक्षप्रतीतं संनिहितवस्तुमात्रं स एव वस्तुस्वभावः, संबन्धिता तु तत्र पदार्थान्तरप्रतिसंधानमवितया परिकल्पितेव ।
"निष्पत्तेरपराधीनमपि कार्य स्वहेतुना । संबध्यते कल्पनया किमकाय कथन ? ॥१॥"
होगा।' तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि घट आदि का पक्ष में प्रवेश होने पर भी उन में सपक्षत्व की अनुपपमि नहीं होगी क्योंकि सपक्ष के लक्षण में गौरव के कारण पक्षभिन्नत्व का निवेश न कर जिस में साध्य का निश्चय हो वह साक्ष होता है केवल इतना ही सपा का रक्षण मान्य है और यह लक्षण पक्षप्रविष्ट घटादि में भी है क्योंकि उस में प्रत्यक्षत्वरूप साध्य का निश्चय है। घट आदि पक्ष में अन्तभंत होने पर उन में प्रत्यक्षत्य के प्रथमतः सिद्द होने से अंशत: सिद्धसाधन की आपत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि सकर पक्ष में माध्यसिद्धि न होने के कारण सकल पक्ष में प्रत्यक्षत्व का अनुमान करने में अंशत: सिद्धसाधन दोष नहीं हो सकता कारण, सकल पक्ष में साध्य का निश्चय ही सकल पक्ष में साध्यानुमिति का विरोधी होता है।
एक पदार्थ के परिपूर्ण ज्ञान से सवज्ञता] सब बात तो यह है कि एक पदार्थ का स्वतः पूर्णरूप से दर्शन भी सभी पदार्थों के दर्शन चिना नहीं होता. अन: पक पदार्थ के दर्शन से सब पदार्थों का दर्शन अनुमानगोचर है। पकपदार्थ के दर्शन में समस्त पदार्थ के दर्शन का अविनाभाव जैनशास भाचागंगके एकवचन से सिद्ध है। यह वचन है 'जे पगं जाण से सवं जाणाजी एक पदार्थ को जानता है वह समनपदार्थ को जानता है।' इस बञ्चन का अनुसरण करनेवाले जन सम्प्रदाय के पूर्वाधार्याने इस वचन के अर्थ को इस प्रकार निश्रित किया है कि-'मिस पुरुपने एकभाव-पदार्थ को पूर्णरूप से देख लिया-प्रत्यक्ष कर लिया उसने मब पदार्थों को देख लिया-प्रत्यक्ष कर लिया। एवं जिसने सब भावों को समग्ररूप से देख लिया उमीने एकभाव को तत्वत:=पूर्णरूप से प्रत्यक्ष किया।' - व्याख्याकार कहते हैं कि यह बात युक्तियुक्त भी है क्योंकि एकपदार्थ अनुगत और व्यावृत्त-स्वाधिन एवं स्थानाश्रित धर्म द्वारा समस्त पदार्थों का सम्बन्धी होता है। 'सब पदार्थों का सम्बन्धी होना' प्रत्येक पदार्थ का स्वभाव है, अतः सब पदार्थों के कान के विना सब पदार्थों से सम्बद्ध स्वभाव के रूप में किसी पक पदार्थ का भी ज्ञान नहो सकता सब पदार्थों को बिना जाने किसी एकपदार्थ को देख कर जो लोक में यह व्यवहार प्रचलित है कि इस पदार्थ को मैंने ततः देख लिया' यह केवल शवमात्र है, उसका कोई अर्थ नहीं है क्योंकि सब पदार्थों को जाने बिना किसी प्रकपदार्थ का तस्वतः दर्शन असंभव है ।
[सम्बन्धिस्वभावता पदार्थ का स्वरूप नहीं है-शंका] यदि यह कहा जाय कि- सम्बन्धिस्वभावता पदार्थ का स्वरूप नहीं होता किन्तु जी सस्तु जिस पदार्थ में प्रत्यक्ष प्रतीत होती है पधं सन्निहित यानी उस में विद्यमान होती है केवल घही वस्तु उस पदार्थ का स्वभाव होती है। सम्बन्धिता ऐसी नहीं है क्योंकि वह अन्य पदार्थ के शान से गृहीत होती है, अतः वह पदार्थ में कल्पित होती है, उसको म्यभान नहीं कह सकते । विद्वानों ने इस यात को इस प्रकार कहा है कि-कार्य अपराधीन होते हुये भी अपने हेतु से निष्पन्न होने के कारण कल्पना द्वारा केवल उसी से सम्बद्ध होता है। अत: जो जिस का कार्य नहीं है वह कल्पना द्वारा भी उस से कैसे सम्बद्ध हो सकता है? आशय यह है कि