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________________ ३८] [ शानथार्ता० स्त १०/१५ तदभिहितनिरासपूर्वकस्वाभिमतसिद्ध्यर्थ पक्षविशेषणमाह-सर्व एवेति । न चैवं घटादेः पक्षप्रविष्टत्वे सपक्षत्वानुपपत्तिः, तदप्रविष्टत्वे च ‘सर्व एव ' इत्यसिद्धमिति वाच्यम् ; पक्षप्रविष्टत्वेऽपि निश्चितसाध्यधर्मत्वेन सपक्षत्वाऽविरोधात् , तत्र गौरवेण पक्षातिरिक्तत्वानिवेशात् । न च तथाप्यंशतः सिद्धसाधनम् , पक्षसामान्ये साध्यासिद्ध्या तस्यादोषत्वादिति दिग् । वस्तुतस्तत्वत एकार्थदर्शनमपि सर्वदर्शनाविनामात्रि, तदुक्तम्-"'जे पगं जाणइ से सव्वं जाणइ" [आचारांग०] इत्यादि । एतदनुसारिभिः पूर्वाचार्यरस्यायमर्थः प्रत्यज्ञायि-[ "एको भाबस्तत्त्वतो येन दृष्टः सर्वे भावाः सर्वथा तेन दृष्टाः । सर्वे भावाः सर्वथा येन दृष्टा एको भावस्तत्त्वतस्तेन दृष्टः ॥१॥" इति । न चैतदयुक्तम् , एकस्यापि पदार्थस्यानुगत-व्यावृत्तधर्मद्वारेण सर्वपदार्थसंबन्धिस्वभावत्वाद, तदवेदने तत्त्वतोऽधिकृतवस्त्ववेदनात् । केवलमभिमानमात्रमेव लोकानां तत्र 'तत्त्वतो दृष्टोऽयमर्थः' इति । जीवों में पत्रं वुद्ध मादि विशेष जीवों में भी आश्रित नहीं हो सकता क्योंकि सामान्य जीय और बुद्ध आदि छद्मस्थ है-ज्ञानावरणीय कर्मों से ग्रस्त हैं तथा प्रमाणसिद्ध एवं इष्ट अर्थ' से विरुद्ध अर्थ के उपदेशक हैं। इसलिए जो छवास्थ नहीं है एवं प्रमाणासिद्ध, और इष्टविरुद्ध अर्थ का उपदेशक नहीं हैं ऐसे 'अहत्' नामक पुरुष विशेष की ही धर्म आदि के साक्षात् शातारूप में सिद्धि हो सकती है। [कुछ कुछ वस्तु के ज्ञान से सर्वज्ञता-वादी का अभिप्राय ] कुछ सर्वशतावादी ऐसे हैं जो सर्यक्ष को इष्ट समस्तपदार्थों का ही ज्ञाता मानते हैं, विश्वस्रष्टा नहीं मानते। धर्मकीर्ति आदि विद्वानों ने कहा भी है कि सर्वज्ञपुरुष सब वस्तुओं का प्रत्यक्ष करें अथवा न करे किन्तु समस्त इष्ट पदार्थों का प्रत्यक्ष करता ही है। उसे इष्ट अनिष्ट सब का शाता मानने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि विश्व में कितने कीटे हैं। ऐसे उसके शान का कोई प्रयोजन नहीं है। यह भी कहा है कि सयज्ञपुरुष सब वस्तुओं का प्रत्यक्ष करे या न करे, इष्ट पदार्थ का तो प्रत्यक्ष करता ही हैं। उस को प्रमाण मानने के लिये उसे दूरदर्शी होना आवश्यक नहीं है, क्योंकि यदि दूरदर्शिता ही प्रमाण मानने का आधार होगी तो दूरदर्शी गीध आदि पक्षी भी प्रमाणरूप से पूजनीय हो जायेंगे। [कुछ कुछ वस्तु के ज्ञान से सर्वज्ञता अनुपपन्न ] कुछ सर्वशवादियों के इस अभिमत का निरासन करते हुये अपने अभिमत की सिद्धि के लिये १४ वी कारिका के उत्तरार्ध में 'सर्व पद का प्रयोग कर यह सूचित किया गया है कि ज्ञेयत्वहेतु से प्रत्यक्षविषयत्व के अनुमान में सद्य पदार्थ पक्ष है । यदि यह कहा जाय कि सभी पदार्थ को पक्ष मानने पर घट आदि का पक्ष में प्रवेश हो जाने से उन में सपक्षत्व की अनुपपत्ति होगी और यदि पक्ष में उन का प्रवेश न किया जायगा तो 'सब पदार्थ पक्ष है' यह कहना असंगत १ य एक जानाति स सर्व जानाति ।
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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