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स्था. क. टीका-हिन्दीविवेचन ]
___ न चैवं तदभावज्ञानमनुमानम्, लिङ्गाभावात् तदुक्तम्- “ न चाप्यस्यानुमानत्वं लिङ्गाभावात् प्रतीयते । भाषांशो ननु लिम स्यात्तदानीमजिक्षणात् ।। १ ।। अभावाबगतेर्जन्म भावांशे हाजिघृक्षिते । तस्मिन् प्रतीयमाने तु नाभाचे जायते मतिः ॥२ ।। न चप तस्य धर्मस्व पदवत् प्रतिपद्यते " इति । [.हो. वा. भाग. २...-११
ततो 'नास्ति' इति ज्ञान फले प्रतियोगिग्रहणपरिणामाभावरूपम्, हानादिबुद्धिरूपे च फलेऽन्यवस्तुज्ञानरूपमभावाख्यं प्रमाणमेष्टव्यम् । तदुक्तम् - " प्रत्यक्षादेरनुत्पत्तिः प्रमाणाभाव उच्यते । सात्मनोऽपरिणामो वा विज्ञानं वाऽन्यवस्तुनि ॥ १ ।। " इति । [ श्लो. बा. अगाव. ११ !
एक घर्मा के भावात्मक धर्म में अभिन्न होने के कारण अभावात्मक धर्म के साथ भी इन्द्रिय का सम्बन्ध हो सकता है। ऐसा नहीं माना जा सकता क्योंकि एक धर्मी में विद्यमान का रस आदि के समान एक धर्मी में विद्यमान भाव और अभाव में भी अत्यन्त अभेद नहीं होता ।।२।।
वग्राहकप्रमाण अनुमानात्म अनुमान से भी अभाव का ग्रहण नहीं हो सकता क्योंकि अभाव का ग्राहक कोई लिङ्ग नहीं है । कहा भी है कि
अभाषज्ञान को अनुमितिरूप नहीं माना जा सकता क्योंकि अभाय का कोई लिङ्ग नहीं होता । भावांश भी अभाव का लिङ्ग नहीं हो सकता क्योंकि अमान्य ज्ञान के समय भाषांश के अभिशासित होने से भावांश अज्ञात रहता है ॥ १॥
भाषांश के अजिशासित होने से भाषांश के अज्ञान काल में जो अभाव ज्ञान का जन्म होता है यह भारांश लिङ्गक नहीं हो मकता, क्योंकि ज्ञात ही लिङ्ग होता है और भावांश की अब प्रतीनि होगी तब अभाव की बुद्धि नष्टीं हो सकती ॥२॥
भाषांश अभाव का धर्म नहीं है अतः पद. जैसे अर्थ का धर्म न होने से अर्थ का अनुः मापक लिङ्ग नहीं होता उसीप्रकार भावांश भी अभाध का निऋयिधया बोधक नहीं हो सकता।
[अभावप्रमाण के दो प्रकार ] उक्त रीति से प्रमाणान्तर से अभाय का ग्रहण संभव न होने से उस के ग्रहणार्थ अतिरिक्त प्रमाण मानना आवश्यक है, इस प्रमाण के दो फल हो मकते हैं, पक, अभाव का ग्रहग और दूसरा हान-उपेक्षा आदि की बुद्धि । प्रथम फल में आत्मा के प्रतियोगिज्ञानरूप परिणाम का अभाव ही प्रमाण होता है और दूसरे फल में अन्य वस्तुज्ञान ही अभावप्रमाण होता है। अन्य बस्तान को अभावप्रमाण मानने का आशय यह है कि म वस्तु में हान या उपेक्षा की बुद्धि होती है जिस वस्तु में उसे इष्टभेद या साधनस्वाभाव का ज्ञान होता है । यह ज्ञान क्रमशः भेद पयं अत्यन्ताभावविषयक होने से अभावप्रमाण में परिगणित होता है क्योंकि उस का किसी अन्य प्रमाण में अन्तर्भाध नहीं है और उस में प्रमाण का बुद्धिरूप कार्य उत्पन्न होता है। अभावप्रमाण के ये दोनों रूप निम्न प्रकार में बताये गये हैं