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________________ स्था. क. टीका हिन्दी विवेचन ] ज्ञास्तेषां वेदादसंभवः । उपदेशः कृतोऽतस्तामोहादेव केवलात् ॥ १० ॥ ये तु मन्यादयः सिद्धाः प्राधान्येन त्रयींविदाम् । त्रयीविंदाश्रितग्रन्थास्ते वेदप्रभवोक्तयः ॥११॥” इति । [ अर्थापत्तिप्रमाण से सर्वज्ञसिद्धि का असम्भव ] विवेचन:-अर्थापति प्रमाण से भी सर्बका की सिद्धि नहीं हो सकती क्योंकि धर्मापदेश आदि कार्य क्ष वि उपपन्न हो जाता है। जैसे वुद्ध आदि का उपदेश स्वप्न में उपलब्ध अर्थ के उपदेश के समान है जिसकी उपपत्ति व्यामोह से होती है । मनु आदि का उपदेश मम्यक् ज्ञान से उत्पन्न होता है क्योंकि उन्हो ने सांगवेद के अध्ययन द्वारा विशेष व्युत्पत्ति अर्जित कर सम्पूर्ण वेदार्थ का अयोथ मान कर लिया है। जैसा कि कुमारिल भट्ट ने कहा है इस समय हम लोगों को सर्वज्ञ का दर्शन नहीं होता अतः प्रत्यक्ष प्रमाण से हम लोगो को सर्वज्ञ की सिद्धि नहीं हो सकती। उत्त के किसी ऐसे पक देश का भी दर्शन हमें नहीं होता जो लिन के रूप में उस का अनुमान करा सके । अतः अनुमानप्रमाण से भी उस की सिद्धि नहीं हो सकती ॥१॥ वेद का कोई नित्यविधि भाग भी सर्वज्ञ का श्रोधक नहीं हैं, उस के भन्त्रवाद और अर्थवाद के भी तात्पर्य की कल्पना सर्यज्ञ के अस्तित्व में नहीं हो सकती ॥२॥ मन्त्र और अर्थवाद अन्यार्थप्रधान हैं, अत: कार्यरूप अभ्य अर्थ के अस्तित्व में ही उन का तात्पर्य माना जाता है। वेदों से सर्पज्ञ का अनुवाद भी नहीं माना जा सकता क्योंकि अन्य प्रमाणों से वह पूर्वबोधित नहीं है ॥७॥ उक्त रीति से जब अनादि अथवा सादि सर्वश का नित्य आगम से प्रतिपादन नहीं होता तो कृत्रिम असल्य आगम से उस का प्रतिपादन कैसे हो सकता हैं ॥ ४॥ सर्वश के वचनरुप आगम से भी अज्ञजनों को सर्वज्ञ का श्रोध नहीं हो सकता । अन्योन्याशित होने से आगम और सर्वज्ञ की सिद्धि की कल्पना कैसे संभव हो सकती है? ॥ ५ ॥ ___ सर्वज्ञ से उक्त होने के कारण वेदवाक्य की सत्यता और वेदवाक्य से सर्वज्ञ की अस्तिता-ये दोनों बातें किसी अन्य प्रामाणिक मूल के अभाव में कैसे सिद्ध हो सकती हैं? ॥ ६ ॥ असर्वज्ञरचित प्रमाणहीम आगम से जिन को सर्वज्ञ की सिद्धि मान्य है ये अपने वाक्य से ही उस. का अधबोध क्यों नहीं प्राम करते ? क्योंकि अन्य असर्यक्ष और सर्वज्ञ के साधनार्थ प्रवृत असर्वज्ञा-दोनी के वचनों में साम्य है, क्योंकि दोनों ही प्रमाणहीन हैं ॥ ७ ॥ यदि इस समय हमें सर्वज्ञ के सदृश कोई दीख पडता तो उस के सारश्य से हम उपमानप्रमाण द्वारा वास्तत्र सबंश को जान सकते. पर ऐसा नहीं है. अतः उपमान प्रमाण से भी उस की सिद्धि असंभव है ॥ ८ ॥ __ युद्ध आदि ने धर्म-अधर्म आदि का उपदेश किया है, यदि च सर्वज्ञ न हो तो उन के उक्त उपदेश की उपपत्ति नहीं हो सकती- यह नहीं कहा जा सकता ॥ ९ ॥
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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